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जैसे-जैसे, जीवन के प्याज का छिलका एक-एक कर उतरेगा, वैसे-वैसे उमरिया तो घटेगी ही। उम्र तो निरन्तर घट रही है लेकिन तृष्णा ? वह निरन्तर बढ़ रही है। तृष्णा नहीं घटती, वासना नहीं घटती, क्रोध नहीं घटता, अहंकार नहीं घटता, केवल उमरिया घट रही है। जीवन के मंगल कलश से पानी निरन्तर रिस रहा है । पता नहीं चलता, पर रिस रहा है। बीस साल पहले आप जवान थे। उससे भी बीस साल पहले बच्चे थे । उससे दो साल पहले माँ के पेट में थे । उससे पहले कोई अदृश्य आत्मा रहे, कोई छोटे से अणु रहे, बीज रहे। ये उमरिया ज्यों-ज्यों बढ़ रही है, व्यक्ति की जिंदगी, त्यों-त्यों घट रही है। नश्वर संसार में अनश्वरता कहाँ!
न रहता भौंरों का आह्वान, नहीं रहता फूलों का राज । कोकिला होती अन्तर्धान, चला जाता प्यारा ऋतुराज । असम्भव है चिर सम्मेलन न भूलो क्षणभंगुर जीवन ।
महादेवी की बहुत प्यारी कविता है यह । भौंरों का आह्वान नहीं रहता, फूलों का साम्राज्य नहीं रहता । कोकिला भी लुप्त हो जाती है । बसन्त भी चला जाता है । इसलिए यह गुमान न करें कि मुझे हमेशा रहना है, हमेशा जीना है । एक बात हमेशा याद रखनी है कि मुझे भी एक दिन जाना है । मेरी भी एक दिन डोली उठनी है । चार जनों के कंधों पर श्मशान की यात्रा करनी है। आखिर, माटी में समाना है। कब जन्मे, कब मरे, इसका कोई महत्व नहीं है । किस तारीख को जन्मे, किस तारीख को मरेंगे इसका कोई मूल्य नहीं है। मंगलवार की बजाए, गुरुवार को मर जाएं, जन्म जाएं या सोमवार की बजाय शनिवार को मर जाएं इससे क्या फर्क पड़ जाएगा। फर्क तो इस बात से पड़ता है कि हमने अपनी जिंदगी का उपयोग क्या किया? मूल्य सिर्फ इस बात का है कि तुम जीवन कितना जीते हो। जीवन को उत्सव बनाकर जियें, यही महत्त्वपूर्ण है ।
हम यहां पर आए, प्रवेश किया। प्रवेश किया है, तो निश्चित तौर पर हमें प्रस्थान भी करना होगा। जिस दिन प्रवेश किया, उसी दिन से प्रस्थान की तैयारियां भी प्रारम्भ हो गई होंगी । हम कब आए और कब जाएंगे, इसका इतिहास लिखने का कोई मतलब नहीं है । महत्व इस बात का है कि हमारे आने के बाद, मरने से पहले, हमने जीवन का कितना उपयोग किया, जीवन कितना सार्थकता
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मृत नहीं मृत्युंजय हों / २१
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