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शायद ये भगवान के दूसरे रूप होंगे। लेकिन जैसे ही पर्यूषण आए, मुझे सुनने को मिला कि उस संत ने, पर्व मनवाने के लिए जो कल्पसूत्र पढ़ा जाता है, उस कल्पसूत्र को पढ़ने के लिए तय कर रखा है कि दस हजार रुपये लेंगे। मेरे जीवन में, मैंने जो क्रान्तिकारी घटनाएं दूसरों के जीवन में देखीं और जिनसे मैं प्रभावित हुआ, उनमें से एक यह भी है । उसके बाद जब भी वे हमारे यहाँ आए मुझे नहीं लगा कि संत हैं । जैसे-जैसे जीवन मूल्यों के प्रति, जीवन में ही स्वयं को निहारने के प्रति भाव बढ़ते चले गए, यही पाया कि किसी की भी वेशभूषा से, चर्या से, वह क्या कर रहा है, इतने मात्र से नहीं जाना जा सकता। आप क्या हैं, किस कुल में पैदा हुए हैं, क्या करते हैं, कौनसा व्यवसाय है, बिल्कुल नहीं देखता । नाम भी स्मरण नहीं रखता क्योंकि जानता हूं नाम भी सारे आरोपित होते हैं। (यहाँ बैठे लोगों में मुश्किल से पांच छः नाम याद होंगे, बस चेहरे सबके पहचानता हूं । ) मेरी समझ से हमेशा व्यक्ति की अन्तरदशा को देखा जाना चाहिए। उस व्यक्ति की आत्मा को देखा जाना चाहिए । महावीर की भी दिनचर्या को देखोगे तो सिवाय समवशरण के, सिवाय देवी-देवताओं की आवाजाही के आपको और कुछ न मिलेगा लेकिन ऐसा देखने से कोई भी व्यक्ति महावीर तक न पहुंच पाएगा। महावीर तक वही पहुंच सकता है जो उनकी अन्तरदशा को पहचान रहा है । मूलतः महावीर की आत्मा क्या है, इसे पहचानने की जिसमें कोशिश है वही महावीरत्व को उपलब्ध करता है । राग, विराग और वीतराग, मेरा विश्वास तो केवल वीतरागता में है, राग से भी ऊपर उठ जाओ, वैराग्य से भी ऊपर उठ जाओ। इतना ही नहीं कि संसार से ऊपर उठो अपितु संन्यास से भी ऊपर उठ जाओ। अपनी अन्तरदशा में जिओ, अपनी अन्तरदशा को सुधारो, उसे निर्मल बनाओ और अपने आप में प्रतिष्ठित होओ। स्वरूप में प्रतिष्ठा ही साधुता की पहचान है ।
ध्यान में विचार आते हैं, उन्हें आने दें या रोकें ? - हंस कुमार जैन रोकने की भाषा तो मेरे पास है ही नहीं । रोके रोका भी नहीं जा सकता । जो आता है आने दीजिए। मुझे तो प्रभु ने यही ज्ञान दिया है कि यदि तुम्हारे जीवन में प्रतिकूल संयोग आते हैं तो उन्हें भी आने दो और अनुकूल संयोग आते हैं तो उनकी भी अगवानी करो। दोनों का एक ही भाव से
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चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ८५
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