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________________ है। प्यास हो, तो ही पानी, पानी है। प्यास हो तो परितृप्ति के लिए प्रयास हो सकेंगे। अगर प्यास हो तो उसे निश्चित तौर पर परितृप्त कर लेना चाहिए । प्यासे मरने की बजाय, परितृप्त होकर मरना ज्यादा अच्छा है। मुझे खुशी है कि हममें वह प्यास है, वह ज्योत है। आप सब यहाँ आए है। बूंद-बूंद ही सही, चिंगारी-चिंगारी ही सही पर कम-से-कम चिंगारी तो जल रही है। लोगों को यह नहीं पता है जिसे आज वे चिंगारी समझते हैं, यही तो वह चिंगारी है जो दीप को ज्योतिर्मय कर देगी। आज तक जितने भी अमृत-पुरुष हुए, चैतन्यमनीषी हुए, निश्चित रूप से वे सभी हमारे जैसे ही थे। जब तक कोई भी साधक यह नहीं स्वीकार करेगा कि महावीर भी मेरे जैसे ही थे, तब तक महावीर को उपलब्ध नहीं कर पाएगा। बुद्ध की सम्बोधि आत्मसात् नहीं कर पाएगा। एक बात हमेशा याद रखो कि तुम्हारा जन्म परमात्मा की पूजा के लिए नहीं वरन् स्वयं परमात्मा होने के लिए हुआ है। तुम्हें जीवन इसलिए नहीं मिला है कि महावीर की पूजा ही करते रहो, तुम जैन इसलिए हो कि तुम्हें भी 'जिन' होना है। ___जीवन का कल्याण महावीर, राम, ईसा या मुहम्मद के नारों से या समारोहों से नहीं होता है। जीवन का कल्याण स्वयं को समारोह बनाने से होता है। तुम्हारी महानता राम या महावीर को पूजने से नहीं, स्वयं राम और महावीर होने से है। तुम रामायण को एक क्या हजार बार भी पढ़ लोगे पर अगर जीवन में न उतार पाए तो बार-बार पढ़ने का क्या अर्थ होगा? वह अलग रास्ता दिखाएगी और तुम दूसरे रास्ते पर चले जाओगे। रामायण में भी दो ही बातें महत्वपूर्ण हैं - पहली यह कि भगवान पद को प्राप्त करने वाले लोग भी नकली मृग के पीछे, मृग-तृष्णा के पीछे भागते हैं और दूसरी यह कि नारी लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन करती है तो रावण द्वारा अपहृत होती है। चूक हमसे यही होती है कि हम कहते हैं भगवान नकली हिरण के पीछे दौड़े; नहीं, एक इन्सान नकली हिरण के पीछे दौड़ा और एक महिला जिसने लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन किया। नकली हिरण के पीछे राम दौड़े, पत्नी को खो बैठे। पत्नी ने लक्ष्मण-रेखा का अतिक्रमण किया, उसे दुश्मन की सेना में रहना पड़ा और राम-रावण का युद्ध हुआ। नकली हिरण के पीछे दौड़ने वाला राम, भगवान नहीं है, वह सिर्फ एक इन्सान है। पुरुष मृग-तृष्णा से बचे और नारी मर्यादा के अतिक्रमण से। जैन कहते हैं महावीर में इतनी ताकत थी कि अंगूठे का स्पर्श किया और पूरा पहाड़ हिल गया। सर्प ने डंक मारा, और महावीर के शरीर से दूध निकल चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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