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________________ अमृत साधकों के बीच उन हस्तियों को बैठने का मौका मिला। राहगीर को तरुवर की जितनी देर के लिए छाया मिले, राहगीर के लिए उतना ही सुखद है। राहगीरों को शीतल छाया देकर तरुवर उतना ही गौरवान्वित होता है। अमृत का साहचर्य जितनी देर मिले, उतना ही सौभाग्य! यह एक सुखद संयोग है कि आप सबके मन में चेतना के विकास की, जीवन के अमृत की अभीप्सा है। बहुत सारे लोग तो ऐसे होते हैं, जिनके लिए न तो जीवन का कोई अर्थ होता है और न ही जीवन को अमृत बनाने की कोई उत्कंठा। ऐसे लोगों की बनिस्पत आपका दर्जा ऊँचा है। अमृत हो जाना और अमृत पा लेना तो एक महान बात है ही। अभीप्सा और उत्कंठा जग जाना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। अभीप्सा तो अमृत-मार्ग का प्रवेश-द्वार है। अगर शुरुआत अभीप्सापूर्ण हो तो अंतस् प्रवेश में बड़ी सुविधा रहती है। ____ ध्यान-शिविर अपनी आत्म-क्षमताओं को चुनौती नहीं है, वरन् आत्मक्षमताओं को जगाने का एक मंगल अभियान है। शिविर में शामिल होने वाले लोग, न भीड़ हैं, न भेड़ धसान हैं। यह तो भीड़ से बाहर आकर कुछ करने की सक्रियता भर है। __मनुष्य में इतनी महान क्षमताएँ हैं मगर खेद इसी बात का है कि आदमी को अपनी ही क्षमताओं का कोई बोध और परिचय नहीं है। ध्यान स्वयं का परिचय-पत्र है। स्वयं को भीतर से जानने की, देखने की, अपने-आप से परिचित होने की एक सजग दृष्टि है। तुमने कभी यह सोचा कि जिस बीज को हम एक मामूली-सा बीज समझते हैं, उस अकेले बीज में कितनी महान क्षमताएँ हैं। एक बीज से पूरा एक बरगद खिलता है, मगर उस एक बरगद से लाखों बीज पैदा हो जाते हैं। यानी सारा जंगल, एक बीज से बरगदों से भर सकता है। ____ मनुष्य भी एक बीज है पर वह बीज से भी बढ़कर है। बीज तो केवल बरगद ही पैदा कर सकता है, पर मनुष्य तो मनुष्य के अलावा और भी बहुत कुछ पैदा करने की गुंजाइश रखता है। मनुष्य की चेतना अगर अंकुरित हो जाए, तो उसका यह अंकुरण ही स्वयं में परमात्मा का जन्म है।। हम लोग ध्यान में प्रवेश करें उससे पहले कम-से-कम इतना जरूर पड़ताल लें कि हमारे मन में अन्तस् प्रवेश की कोई भावना, कोई अभीप्सा है या नहीं है। अभीप्सा जितनी गहरी होगी, ध्यान में उतनी ही गहराई आएगी। कमजोर अभीप्सा को लेकर भीतर में सुदृढ़ स्तंभों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भीतर सोई चैतन्य-ऊर्जा का जागरण नहीं किया जा सकता। प्यास हो तो ही पानी का मूल्य अमृत की अभीप्सा/२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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