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भला कोई आदमी सेवा के लिए राजनीति में आता है? सेवा के लिए नहीं, पदों के लिए आता है। अगर पद मिल गया तो अहंकार फूल गया अन्यथा धर में ही रह गया। अभी तो आप मंदिर भी जाते हैं, पूजा में भी जाते हैं पर ईमानदारी से पूछिए स्वयं से, क्या सचमुच परमात्मा के लिए जाते हैं? तूम पूजा में जाते हो क्योंकि तुम्हारे फलां सम्वन्धी की ओर से पूजा है। इसलिए उस सम्बन्धी के लिए गजा में जाते हो। अपनी रिश्तेदारी को निभाने के लिए, अपनी सांसारिकता को निभाने के लिए तुम अध्यात्म के केन्द्र पर अपनी दस्तक देते हो। परिणामतः किसी को पता चल जाए कि यहाँ पर स्वामीवात्सल्य है, भोजन का आयोजन है तो पूरा समाज इकट्ठा हो जाता है, जैसे घर में खाना ही न खाते हों। अगर यह पता चले कि कहीं पर धर्म-चर्चा चल रही है, तो मुश्किल से पांच-सात व्यक्ति मिलेंगे वे भी पता नहीं रास्ता भूल गए होंगे। इसलिए कहते हैं धर्म के रास्ते पर वे जाते हैं जो पूरी तरह रिटायर्ड हो गए हैं। समय पास करने के लिए वे लोग मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा, स्पाध्याय-केन्द्र इन सबमें जाते हैं। हाँ, अगर यह पता वल जाए कि मंदिर में दर्शन करने के लिए कोई बड़ा नेता आ रहा है, तो फिर देखो सारे के सारे पदाधिकारी और कोई पदाधिकारी नहीं होगा तो भी डंडे खाकर भीतर घुसेगा कि उस नेता के साथ फोटो आ जाए। तो मंदिर में इस परमात्मा की प्रतिमा की क्या आवश्यकता है, उस बड़े नेता की ही मूर्ति लगाओ न, जिनके लिए आते हो।
ऐसा ही हुआ। कोई महारानी किसी मन्दिर में पहुंचने वाली थीं! सभी को सूचना हो गई। मन्दिर में इतनी भीड़, वेशुमार लोग इकट्ठे हो गए कि सम्भालना मुश्किल । जव महारानी मन्दिर पहुंची तो इतने अधिक लोगों को देखकर बहुत प्रभावित हुईं कि अरे! मेरे देश में इतने धार्मिक लोग हैं कि इतनी बड़ी संख्या में मन्दिर पहुंच रहे हैं। वह पुजारी के पास पहुंची और बोली - धन्यभाग कि मेरे देश में इतने धार्मिक लोग हैं। पुजारी ईमानदार व्यक्ति था। इसीलिए उसने कहा महारानी आप भूल कर रही हैं यह सोचकर कि आपके देश में इतने धार्मिक लोग हैं। सचाई तो यह है कि इनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो मन्दिर के लिए आया हो । कल आकर देखिए विना किसी को सूचना दिए, तब पता चलेगा कि इनमें कितने भगवान के पुजारी हैं और कितने केवल प्रपंची। इनमें से कोई भी धार्मिक या परमात्मा का पुजारी नहीं है। महारानी को विश्वास न हुआ, वह चली गई। और दूसरे दिन विना किसी सूचना के पुनः आई तो वहाँ कौए भी उड़ते दिखाई न दिए।
चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/६३
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