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________________ हो गई है। ध्यान का उद्देश्य है व्यक्ति की अभीप्सा, प्यास जग जाए। प्यास ही न हो तो पानी की क्या कीमत? प्यास हो तो चुल्लू भर पानी भी प्यास बुझा सकता है, अन्यथा घड़ा भर पानी भी व्यर्थ है। इसलिए प्यास को जगाना है। प्रार्थना अपने आप जन्मेगी। अभीप्सा पैदा करना है, पानी स्वतः निपजेगा। किताबों और कोषों में तुम्हें प्यास शब्द मिल जाएगा। पानी की परिभाषा मिल जाएगी। पर प्यास तो तभी उठती है, जब हम अन्तर का अवलोकन करें, निरीक्षण करें। अन्तर ही क्यों, जगत् का भी निरीक्षण करो। देखो और फिर जो देखा है, उसके बारे में मनन करो, प्यास इसी तरह उठती है। किसी की शवयात्रा देखी, यह दर्शन हुआ। उस पर सोचो, तो लगेगा, यह मेरी ही शवयात्रा है, या एक दिन मेरी भी ऐसी ही अर्थी निकलेगी। यह ज्ञान हुआ और इस ज्ञान का जो परिणाम होगा, वह है प्यास । मुझे सुन रहे हो, यह श्रवण हुआ। मनन करो, तो प्यास पनपेगी। मेरा काम प्यास जगाना है। मेरे यहाँ से जाने के बाद, मेरे लिए तुम्हारे भीतर जो तड़फन जगती है, यह शुभ है। मेरा काम पूरा हुआ। मुझे जो लौ तुम्हारे भीतर जगानी है, वह मैं जगा चुका और वह है प्यास । अपना उद्देश्य तो प्यास की लौ को जगाना है। इतनी प्यास हो कि बिना पानी के आदमी तड़फने लगे। जब इतनी प्यास जगती है तभी गुरु से कुछ प्राप्त करने की पात्रता अर्जित होती है। जब सद्गुरु पहचान लेता है कि इसके भीतर इतनी प्यास, अभीप्सा और महत्वाकांक्षा है तब वह स्वतः बिन मांगे अपना उंडेल देता है। 'बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिलें न चून ।' अपने आप उपलब्ध हो जाता है पात्रता होने पर। अभी तो आप मंदिर भी परमात्मा के लिए नहीं जाते हो। संसार को पाने के लिए मंदिर जाते हो। कहीं कोई मुकदमा चल रहा है वह न हार जाओ इसलिए मंदिर जाते हो। अभी दुकान में बहुत घाटा लग रहा है, परमात्मा के मंदिर में जाने से शायद घाटा कम हो जाए | अभी तो शादी नहीं हुई है मंदिर जाने से कहीं कोई जुगाड़ लग जाए। इस तरह तुम परमात्मा के चक्कर लगा रहे हो। जब धन से हार गए तो धर्म का दामन पकड़ लिया। सुख तुम्हें छोड़कर चला गया तो मंदिर का दरवाजा पकड़ लिया। जब तुम अपने दम पर प्रतिष्ठा न करवा सके तो बोलियाँ और चढ़ावा बोलकर धन को प्रतिष्ठित करने की तरकीब ढूंढ निकाली। जव अपने बलबूते पर अपने पद पर न बैठ सके तो राजनीति की कुर्सी की तरह पदों के पीछे दौड़ने का सिलसिला शुरु कर दिया। परमात्मा : चेतना की पराकाष्ठा/६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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