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परमात्मा :
चेतना
की पराकाष्ठा
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मेरे प्रिय आत्मन्!
ध्यान का उद्देश्य हमारे अन्तर जगत में बसे हुए शैतान को पहचानना और भीतर छिपे हुए परमात्मा को प्रगट करना है । जो जीवन हमें दिखाई दे रहा है, इस जीवन के पीछे एक और ऐसा जीवन रुंधा पड़ा है जिससे हम सभी अनजान हैं । ध्यान का कार्य हमें उस अनजान तत्त्व से परिचित कराना है, उस अज्ञेय और अज्ञात से साक्षात्कार कराना है, स्वयं के अस्तित्व, वर्तमान और ब्रह्मरूप को आत्मसात करवाना है । यह व्यक्ति के लिए तभी होगा जब वह वस्तुनिष्ठ व्यक्तित्व को प्रयोगधर्मी मार्ग से गुजारेगा।
महावीर का प्रसिद्ध वचन है 'वत्थु सहावो धम्मो' । वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। महावीर के लिए धर्म की इतनी ही परिभाषा है कि वस्तु का जो व्यक्तित्व है वह व्यक्तित्व ही धर्म का अर्थ है। यह व्यक्तित्व तभी मुखर होता है जब वह अपने स्वभाव को पहचानने के लिए प्रयास करता है। जब-जब व्यक्ति अपने स्वभाव में होता है तब-तब
चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ५३
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