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लेकर पूरी अयोध्या नगरी में घूमकर आओ। आज मैंने नगर को बहुत सजवाया और शंगारित किया है, देखकर आओ कि तुम्हें सब से सुन्दर-अच्छी चीज कौन सी लगी। तुम्हें कौन सी शृंगारित वस्तु पसन्द आती है। पर एक बात ध्यान में रखना, तुम्हें सब कुछ देखने की छूट है बस शर्त एक ही है कि कटोरे में से एक बूंद भी तेल न छलके। अगर एक बूंद भी गिर गई तो तुम्हारे साथ चार सुभट चल रहे हैं, गर्दन पर तलवार आ जाएगी। वह चला। सुबह से शाम तक पूरे नगर में चलकर, घूमकर, उसके बीच जीकर आया और शाम जब सम्राट ने पूछा क्या देखा? उसने कहा, सिर्फ कटोरा; सिवा कटोरे के और कुछ भी नहीं। अगर हमारे पास जीवन का कोई भी लक्ष्य है तो चाहे जहाँ जाओ, चाहे जैसे जिओ। जीना है बहुत उत्साह बहुत आनन्द और बहुत उत्सव के साथ जीना है। अगर हम जीवन का लक्ष्य निर्धारित करते हैं तो एक लक्ष्य बनाने से हमारी दूसरी क्षमताएं नष्ट नहीं होंगी, उनका दमन नहीं होगा। वरन् हमारा लक्ष्य, हमारे संकल्प, हमारी दमित प्रतिभाओं और क्षमताओं को, योग्यताओं को और अधिक जगाएंगे। वे हमारे लक्ष्य को पूरा करने में अधिक सहायक होंगे। मार्ग चाहे जितने बनें लक्ष्य एक हो जीवन के विकास का। अब यह आपको निर्धारित करना है कि आपके जीवन का मूल लक्ष्य क्या होना चाहिए। सारे लोग बिना लक्ष्य के जीते हैं, जी रहे हैं। सुबह होती है, शाम होती है, जिन्दगी यूं ही तमाम होती है। वही व्यक्ति असली जीवन जीता है जिसने अपना लक्ष्य बनाया और लक्ष्य के प्रति संकल्पित है, समर्पित है, सर्वतोभावेन ईमानदारी के साथ अपने लक्ष्य के लिए प्रयल करता है। निश्चित रूप से वह लक्ष्य के निकट पहुंचता है। सफलता उसके चरण चूमती है।
आज प्रातःकाल ध्यान में आपके चरणों का स्पर्श करने पर मुझे मस्तिष्क में नीले गोले और फिर उस नीले गोले में अग्नि गोले के आ जाने का अनुभव हुआ। किस कारण ऐसा दिखाई दिया था? उसे अपने जीवन में मैं किस रूप में स्वीकार करूँ? जब किसी भी व्यक्ति के भीतर अपने गुरु के स्पर्श के कारण कोई भी
चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/५१
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