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मेरे प्रिय आत्मन्,
चेतना का ऊर्ध्वारोहण
हमारा जीवन हमारे लिए तानपूरे का संगीत है । जीवन अगर संगीत नहीं है तो संगीत बनाया जा सकता है। तानपूरे के तारों को साधने की कला आ जाए तो हरेक तानपूरे से संगीत पैदा कर सकता है।
दुनिया में दो किस्म के लोग है एक तो वे जो जीवन के तारों को बहुत ज्यादा कसने में विश्वास रखते हैं, दूसरे वे जो इन तारों को बहुत ज्यादा ढीला रखते हैं। कुछ लोग ऐसे धर्म के मार्ग पर चलते हैं जो उन्हें पूरी तरह अस्थि-कंकाल बना दे। दूसरे वे लोग हैं जो धर्म का ऐसा मार्ग चुनते हैं जिससे उमर खय्यामी जिन्दगी का निर्माण होता है। खाओपिओ, मौज उड़ाओ। उनका जीवन हिप्पी कट होता है।
जीवन-मूल्यों की दृष्टि से दोनों ही परम्पराएं, दोनों प्रकार के लोग चूक रहे हैं। कई लोग ऐसे हैं जो इतनी अधिक तपस्या, इतने अधिक उपवास करते हैं कि उनका शरीर सूखकर कंकाल हो जाता है। चलने की शक्ति नहीं रहती, उठनेबैठने का बल नहीं रहता, बस पड़े हैं।
चेतना का कारोहण/३२
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