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________________ बात-बात में चिड़चिड़ा जाते हैं, क्रोध करते हैं, अहंकार प्रगट करते हैं। ऐसे में उनसे पूछो तुम क्या कर रहे हो, कहेंगे तपस्या कर रहे हैं। ____ तपस्या किस चीज की हो रही है? तन की? मन की तपस्या तो कहीं नहीं होती, सिर्फ तन की ही तपस्याएं हो रही हैं। परिणामतः जीवन के तानपूरे के तार इतने अधिक कस जाते हैं कि उसकी तपस्या से आनन्द प्रगट नहीं होता वरन् क्रोध प्रगट होने लगता है। इसलिए सबसे महान् आश्चर्य कि तपस्या करने वाले अक्सर क्रोधी होते हैं। वे अधिकांशतः चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं। मैं तपस्या के विरोध में नहीं हूँ। मेरे लिए तपस्या बहुत सार्थकता रखती है, लेकिन वह तपस्या जिससे हमारे जीवन-मूल्यों का निर्माण होता हो। जिससे हमारे मन की छटपटाहट कम होती हो। जिससे हमारे क्रोध और उत्तेजना के संवेग समाप्त होते हों वह तपस्या, तपस्या है। यदि कोई भिखारी तुमसे पैसे मांगता है तो तुम यह कहकर कि इससे भीख मांगने की आदत पड़ती है, पैसे नहीं देते हो। कहते हो कि वह कमाकर खाए। जब वही कमाकर खाता है, मूंगफली बेचता है और तुम्हारा बेटा उससे मूंगफली खरीदना चाहता है, तब भी तुम मना कर देते हो कि अरे यह काला है हब्शी जैसा, इसके हाथ गंदे हैं। कमाकर खाता है तब भी तुम्हें स्वीकार नहीं और भीख मांगता है वह भी स्वीकार नहीं। तपस्या वहाँ होती है जहाँ दोनों के प्रति तटस्थदृष्टि/स्थित-प्रज्ञा होती है। जब दोनों के प्रति समानता है तभी तपस्या सार्थक है। चौबीस घंटे भोजन न करके स्वयं को तपस्वी समझते हो, तो ठीक है। कभी-कभी उपवास करना शरीर के लिए लाभदायक है। लेकिन महावीर ने या अर्हत-पुरुषों ने ऐसी तपस्या करने के लिए कभी नहीं कहा जिसमें तुम दिन-रात क्रोध करते रहो और तन को सुखाते चले जाओ। चिड़चिड़ भी करते रहो और तप भी। तप ज्ञान मूलक होना चाहिए अज्ञान मूलक नहीं। अज्ञानमूलक तप हो, तो स्वयं पार्श्वनाथ जाते हैं और कमठ से कहते हैं तुम्हारी तपस्या तुम्हें नर्क में भी ले जा सकती है। आखिर उपवास वह भी कर रहा था। अज्ञानमूलक की गई तपस्या मनुष्य के लिए बंधनकारी होती है और ज्ञानमूलक की गई क्षणभर की तपस्या भी व्यक्ति के लिए मुक्ति का निमित्त बनती है। वह तपस्या जो हमारे शरीर को सुखाये, तानपूरे के तारों को अधिक कसे तो बहुत कटु-कर्कश आवाज आएगी। उस कर्कश ध्वनि को कोई भी सुनना पसंद नहीं करेगा। दीपराग या मल्हार राग को छेड़ने के लिए तानपूरे को साधना होगा। चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/३३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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