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अगर तुम संत न होते, तो मैं तुम्हें हलाल कर देता, गर्दन काट देता।' संत बोले, 'हमने सब कुछ देखा है, बस एक यही नहीं देखा, तुम काटो, हम शरीर को कटते हुए देखेंगे।' सिकंदर नहीं समझ पाया और शायद
आप भी नहीं समझ पाए। उस व्यक्ति ने यह कहने का दुस्साहस इसीलिए किया कि शरीर जो कटने वाला है वह और उस शरीर का दृष्टा, उस शरीर का साक्षी दोनों अलग हैं। वह अपने शरीर को कटता हुआ देखेगा। अगर शरीर बीमार होता है तो वह बीमार होते हुए शरीर को देखेगा। क्रोध उठता है तो पनपते हुए क्रोध को देखेगा। साक्षी-भाव, दृष्टा-भाव, ज्ञाता-भाव । हम जानेंगे, देखेंगे, सोचेंगे। इसलिए साक्षी भाव, दृष्टा भाव के साथ जीते हो तो व्यवसाय की दुकान, दुकान नहीं एक मंदिर है। उस दिन तुम स्वयं को पक्का धार्मिक मान लेना, जिस दिन तुम्हारा घर और दुकान भी परमात्मा का मंदिर हो जाये। कबीर कहते हैं : खाऊं पीऊं सो सेवा, उठू-बैलूं सो परिक्रमा । खाना-पीना भी सेवा हो जाए
और उठना-बैठना भी परिक्रमा-परमात्मा की सेवा, परमात्मा की परिक्रमा । नमस्कार।
अमृत की अभीप्सा/१४
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