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________________ के भीतरी प्रदेश में ध्यान धरने का हो। निश्चित तौर पर व्यक्ति के रोग कटेंगे, व्यक्ति निरामय होगा, आरोग्यमय होगा। हमारी मानसिक शक्ति जब नाभि पर सचेतन और स्थिर होगी तो सम्पूर्ण शरीर को अपनी चैतन्य-ऊर्जा प्रदान करेगी। निश्चय ही, सकारात्मक परिणाम आयेंगे। घुटने दुखे कि कमर दुखे कि माथा दुखे, आप नाभि के मूल में, भीतर में ध्यान धरें, वहाँ की सचेतनता आपके शरीर को सकारात्मक परिणाम देगी। दूसरा तल हृदय है। जीवन की सम्पूर्ण जीवनी-शक्ति का मूल केन्द्र व्यक्ति का हृदय ही होता है। यहीं से ही रक्त का प्रवाह चलता है। जीवनीशक्ति यहाँ व्याप्त है। इसलिए हृदय व्यक्ति की चेतना का क्षेत्र है। हृदय पर ध्यान धरने से व्यक्ति को उसकी चेतना का ज्ञान होता है। हृदय में ध्यान धरने से अन्तर्मन में शांतिमय स्थिति बनती है। और यह ऊपर का प्रदेश, मस्तिष्क का क्षेत्र अपने शरीर का सर्वोच्च केन्द्र है, जहाँ पर कि व्यक्ति का मन, बुद्धि और आत्मा के अनंत प्रदेश, चेतना की सर्वोच्च शक्ति इस ऊपरी तल में व्याप्त होती है। हमारी सबसे प्रमुख चार इन्द्रियाँ इस ऊपरी तन में ही हैं। आँख, नाक, कान, मुख ये चार इंद्रियाँ इसी तल पर हैं। शरीर का दस प्रतिशत भाग ठुड्डी से माथे तक है। मगर शरीर का सबसे इंपोरटेंट पार्ट इसी दस प्रतिशत में ही समाया हुआ है। अर्थात् नब्बे टका माल ठुड्डी से माथे तक और बाकी का दस प्रतिशत माल गले से पाँव तक। मस्तिष्क व्यक्ति का ज्ञानक्षेत्र और विचारक्षेत्र है। मस्तिष्क ही मन, बुद्धि और भावों का क्षेत्र है। यहाँ अन्तर्मन के क्षेत्र में सचेतनता को साधना, यहाँ बुद्धि रूपी गुफा में ध्यान धरना अपने आप में अपने आत्म-प्रदेश, अपनी जीवनी शक्ति और ज्ञान-प्रदेशों पर ही ध्यान धरना है। शरीर की नब्बे प्रतिशत गतिविधियाँ यहीं से निर्दिष्ट और संचालित होती हैं। जब-जब व्यक्ति अपने ज्ञान-प्रदेशों पर ध्यान धरता है, तब-तब जीवनी-शक्ति से, आत्मशक्ति से रूबरू होता है। चित्त की शांत स्थिति में हम अपने चैतन्यतत्त्व से एकाकार होते हैं। और तब हम हमारे भीतर की असाधारण उच्च आत्म-क्षमताओं के ७८ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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