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जाग्रत होने के कारण जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों और क्रोध-मान-माया के घेरों को तोड़ने में, उनसे उपरत होने में सफल होने लगते हैं । अर्थात् ज्यों-ज्यों चिराग जलेगा त्यों-त्यों अंधकार छंटेगा।
अंधेरों को हटाने से अंधेरा नहीं हटता। भीतर में सहजता, सचेतनता और सकारात्मकता का प्रकाश जागृत होने पर नकारात्मकताओं के अंधेरे अपने आप छंट जाया करते हैं। उन्हीं क्षणों में अनुभव हुआ करता है - मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, जीवन का मूल स्रोत क्या है? मेरी गति, प्रगति और मुक्ति का रहस्य क्या है? अनेक साधकों को इस दशा में अनुभव हुआ है - सोहम् शिवोहम्।
अरिहंते शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि।
अप्पं शरण गच्छामि। हम, अपने आप पर विजय प्राप्त करने वाले अरिहंत प्रभु की शरण स्वीकार करते हैं। जीवन को सन्मार्ग प्रदान करने वाले धर्म की शरण स्वीकार करते हैं और जीवन को आधार देने वाले आत्म-तत्त्व की शरण स्वीकार करते हैं। आत्मभाव लिये हुए आइये अब हम धैर्य और शांतिपूर्वक ध्यान में प्रवेश करते हैं।
ध्यान से जानिए स्वयं को
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