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ही याद हो गया था? फिर-फिर पढ़ा। टीचर को पूछा, फिर समझा, फिर याद किया। फिर-फिर भूलते गये, फिर-फिर रिवाइज़ करते गए और अन्त में जब एक दिन परीक्षा आई, तो जो रिवाइज़ करता रहा वह तो पास हो गया, बाकी सब परीक्षा-परिणाम देकर वापस उसी कक्षा में लौटा दिये गए।
ध्यान के मार्ग में भी 'प्रेप' और 'यूकेजी', पहली-दूसरी कक्षा पढ़नी होती है। ए-बी-सी-डी आने के बाद तो बारहखड़ी सीधी-सरल है। जब तक गुर हाथ न लगे, तभी तक राह कठिन है। धैर्य धरो और मन लगाकर ध्यान धरो, तो ध्यान हमें स्वत: अपने आत्म-सत्य से जोड़ देता है।
अपने-आप को जानने वाला व्यक्ति, ज्ञानपूर्वक जीया करता है, ध्यान पूर्वक, बोधपूर्वक जीवन जीया करता है। मेरी बात को सकारात्मक लेते हुए मान लीजिए कि आप एक नारी हैं। आप एक पत्नी हैं और ध्यान के मार्ग पर चलने के कारण आपने जान लिया कि देह के धर्म क्या हैं और आपकी चेतना के गुणधर्म क्या हैं? आप रात को सो गए। आपका पति आया। वह आपके साथ सोना चाहता है। पति अपनी भड़ास निकालना चाहता है। आप इसके प्रति रुचिशील नहीं हैं, पर पति आपको छोड़ेगा नहीं। पुरुष में जब भड़ास उठने लगती है तो वह एक छिपा हुआ सांड बन जाता है। सांड की भड़ास निकल जाए तो वह ठंडा हो जाता है, न निकले तो वह सींग मारने लग जाता है। ऐसी स्थिति में मान लो तुम्हारे सामने मजबूरी बन चुकी हो। पर याद रखो ध्यानी हर हाल में ध्यानी ही रहता है। सचेत हर हाल में सचेत ही रहता है।
तुम्हारे पति के द्वारा निकाली जाने वाली भड़ास के बावजूद तुम अपनी मुक्ति साध लोगे। तुम देखोगे कि तुम्हारी काया अलग पड़ी है और तुम अपनी काया से अलग हो। तुम जान ही लोगे कि काया को देना तुम्हारी मजबूरी हो सकती है, पर अपने आप को देना तुम्हारी मजबूरी नहीं हो सकती है। तुम्हें निश्चय ही अपने पति पर दया आने लगेगी। तुम्हें लगेगा यह पति नहीं, एक कमजोर इंसान है, जो अपने मन का गुलाम है । तब तुम उन क्षणों में भी भेद-विज्ञान को साध लोगे। देह के प्रति स्वत: अनासक्ति फलीभूत हो जाएगी।
ध्यान से जानिए स्वयं को
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