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________________ गुलाब के फूल बनो और सहज अपने आनंद में मुस्कराते रहो। जन्म है तो भी वैसे ही, मृत्यु है तब भी वैसे ही। कोई मर जाए तो दो आँसू ज़रूर ढुलकाना, पर उसे याद कर-करके उसकी याद में आर्तध्यान और रौद्रध्यान मत करते रहना। काया आखिर सबकी मरणधर्मा है सो जो मरणधर्मा थी वो मर गई। काया के मरने के बाद जो जीवितधर्मा था वह अब भी जीवितधर्मा है। वह किसी अज्ञातलोक की यात्रा पर चल चुका है। दोनों वहीं के वही हैं । केवल दोनों के बीच रहने वाला संयोग-संबंध बिखर गया। एक मुट्ठी रेत, अगर किसी के हाथ में हो तो बँधी हुई मुट्ठी होने के कारण वो रेत पूरे हाथ में होती है, पर अगर मुट्ठी खुल जाए तो रेत चारों तरफ बिखर जाती है। आदमी का जाना तो मुट्ठी खोलने की तरह ही है। जो मूर्ख होते हैं वे मरे हुए को याद कर-करके खुदको मुवा बना लेते हैं। जो ज्ञानी होते हैं, ध्यान के मार्ग पर जीने वाले होते हैं वे जानते हैं कि मरणधर्मा आखिर अपने धर्म को अपना लेता है। ऐसे लोग जान लिया करते हैं अपने गुणधर्मों को भी और औरों के गुणधर्मों को भी। ध्यान जानना है। लोग स्कूल जाते हैं पढ़ने के लिए, कुछ जानने के लिए, विश्व भर की सूचनाओं को एकत्रित करने। ध्यान-शिविर भी एक पाठशाला है। इसमें भी हम पाठ पढ़ते हैं पर वे पाठ किताबों के नहीं होते। इसमें हम अपनी ही किताब को पढ़ते हैं। किसी और की लिखी हई किताब को नहीं पढ़ते; अपनी ही लिखी हुई किताब को पढ़ते हैं। जो भी है, जैसी भी है। अतीत में संजोए गए संस्कारों को पढ़ते हैं। चित्त की धाराओं को पढ़ते हैं। चित्त की धाराओं के प्रति सजगता साधते हैं। अपने साथ अपनी सचेतनता साधते हैं। सचेतनता खण्डित हो जाए तो फिर साधेगे। फिर खण्डित हो जायेगी, तो फिर साधेगे। बिना सचेतनता के ध्यान नहीं सधता और बिना ध्यान के जीवन में गहराई नहीं आती। सचेतनता को, ध्यान को साधना तो प्राइमरी स्कूल पास करने की तरह है। जब आपने किताब पढ़ी थी पहले दिन, पहला चेप्टर पढ़ा था तो क्या पढ़ते ७२ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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