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आप किसी के अपमान दिये जाने पर भी कहिए- 'आइए, आपका स्वागत है।
सम्मान अदा करने वालों को शुक्रिया अदा करना सद्व्यवहार है। तुम तो किसी को देखते ही अपने स्वागत-भाव का, अपने अभिवादन का, अपने प्रेम का पुष्प, उस पर लुटा दो। तुम्हारे द्वारा दिया जाने वाला स्वागत-भाव तुम्हें तो धन्य कर ही रहा है, अगले को भी अभिभूत कर रहा है। यही तो ज़िन्दगी को सहजता से जीने का आनंद है।
जीवन में किसी का सन्त और साधक होने का मज़ा ही यही है कि व्यक्ति ने अपने-आप को घेरों से मुक्त कर लिया। अब तो जो सहज में होगा, उस हर मिलन का आनंद है। हम सब अपने मन को, अपनी मानसिकता को, अपने विचारों को संत की बना लें। जिनकी सोच में संताई हो, वही वास्तव में संत है।
सहजता से जीओ तो न कभी चिन्ता होगी, न कभी तनाव होगा। सहजता से जीते हो तो ध्यान में मन लगाने का उपक्रम भी नहीं करना पड़ता है। सहजता से जीने वाले व्यक्ति के लिए तो अगर बैठा है तो भी सहज समाधि है। अगर चल रहा है तब भी सहज समाधि है। वह अपनी मस्ती में है। अपने भीतर की अलमस्ती में है। और अपने भीतर की अलमस्ती को जीना, पल-पल अपने में आनंद लेना - इसी का नाम योग और समाधि है।
जब तक योग और ध्यान को भी आरोपित करते चले जाओगे, तब तक योग और ध्यान भी तुम्हें सहज लगेंगे, वहीं अगर ध्यान-योग को सहजता से ले लो, तो ध्यान धरना भी सागर में नौका-विहार की तरह हो जाएगा। 'हँसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्' तब हँसना-खेलना भी ध्यान ही हो जाएगा।
दुनिया में कोई कबड्डी खेलता है तो कोई गुल्ली-डण्डे खेलता है। मैं ध्यान में खेलता हूँ। मैं अपने में अपना आनंद लेता हूँ। मेरे लिए जीवन एक उत्सव है, आनंद का उत्सव! इन्द्रधनुष के रंगों का उत्सव!
सहजता से जीने वालों के लिए ज़िन्दगी आनंद का गलियारा है, उनके लिए ज़िंदगी एक मज़ा है। जीना न आए तो ज़िंदगी खुद ही एक सजा है। जिन लोगों ने जीवन के मर्म को न समझा, वे ही लोग व्रत-तप के अनुष्ठान
शांति पाने का सरल रास्ता
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