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वह अविनाशी और नश्वर सहज में ही व्यक्ति को आकर मिल जाता है । कभी कबीर जैसे लोगों ने कहा था- 'सहज समाधि भली' । जो समाधि सहज में लग जाए, वही समाधि अच्छी है।
सहज मिले सो दूध सम, माँगा मिले सो पानी ।
जीवन में सहजता को जीने के लिए मैंने कबीर के इस दोहे का खूब आनन्द लिया है और हर विपरीत घड़ी में, जब भी ऐसी वैसी परिस्थितियाँ बनीं इस दोहे को याद कर-कर मैंने जीवन को सहजता का सुकून दिया है।
सहज मिले सो दूध सम,
माँगा मिले सो पानी ।
कह 'कबीर' वह रक्त सम, में खींचा-तानी ॥
जीवन में जो सहजता से उपलब्ध हो जाए, वह दूध के समान है, किसी से माँगकर, किसी की ख़ुशामदी करके मिले, वह पानी के समान है। पर जिसमें खींचतान होती है वह रक्त के समान है, भले ही उसमें कितनी ही बड़ी दौलत क्यों न समाई हो । प्रेम का पानी ज्यादा अच्छा है, दान का दूध पीने की बजाय । शबरी के जूठे बेर और विदुर के केले के छिलके भी मजा दे जाते हैं, दुर्योधन जैसों के मेवों की बजाय ।
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तो जीवन का पहला और आखिरी मंत्र है- सहजता । सहजता यानी सहज मुस्कान, सहज व्यवहार, सहज क्रियाकलाप, सहज उपलब्धि । जीवन को जितनी सहजता से जीओगे, जीवन उतना ही सुख, शांति और मुक्ति की तरफ बढ़ता जाएगा। जीवन को हम जितना अधिक आरोपित, कृत्रिम, बनावटी, दिखाऊ जीते रहेंगे, व्यक्ति की शांति और मुक्ति उससे उतनी ही दूर होती जाएगी।
कहते हैं : कुछ मज़दूर बड़े-बड़े खंभों को उठा रहे थे। खंभे इतने भारी थे कि मज़दूर पसीने से तरबतर हो रहे थे । ठेकेदार उनसे जल्दी करने का कह रहा था। तभी एक राहगीर ने ठेकेदार से कहा, 'भाई, इन बेचारों के काम
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शांति पाने का सरल रास्ता
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