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________________ परिवर्तनशील है। किन्हीं निमित्तों को पाकर वह अनुकूल बन जाती है, किन्हीं निमित्तों को पाकर वह प्रतिकूल बन जाती है। जीवन के इस सत्य को, इस मर्म को समझ लिया जाए, तो जीवन के हर अनुकूल-प्रतिकूल निमित्तों को जीना, उससे सहजतया गुजरना हमारे लिए मुमकिन हो सकता है। नहीं तो, यह दुनिया हमारा हाल वही करती है जो किसी के लिक्विट ऑक्सीजन में गिरने से होता है। लिक्विड हमें जीने नहीं देता और ऑक्सीजन हमें मरने नहीं देता। यह दुनिया तो जीसस जैसे देव-पुरुष को भी सलीब पर चढ़ा देती है और महावीर जैसे महापुरुष के भी कानों में कीलें ठोक देती है। सुकरात जैसे सत्य-पुरुष को भी विषपान करा देती है तो मंसूर जैसे महान् संतों के भी हाथ-पाँव काट देती है। दुनिया तो चढ़ने पर भी हँसती है, और उतरो तो उतरे पर भी हँसती है। निकम्मे, फालतू, ठाले बैठे और भला कर भी क्या सकते हैं? कबीर की मानो तो तू तो राम सुमिर जग लड़वा दे। हाथी चलत है अपनी गति से, कुतर भुंसत वा को भुंसवा दे। तू तो राम सुमिर जग लड़वा दे। तुझे तो जो करना है, तुम तुम्हारे करते जाओ। हाथी अगर कुत्तों के भौंकने की परवाह करता रहेगा, तो जी लिये गजराज! 'हाथी चलत है अपनी गति से'। हाथी से सीखें उसकी सहजता और हिरण से लें उसकी सरलता। याद रखिए प्रभु के राज्य में वही प्रवेश पाता है जो सहज-सरल-निश्छल होता अगर हम मीरा जैसी अमृत-साधिकाओं के शब्दों का मनन करें, तो लगता है कि मीरा को उसका भगवान बहुत सहज में ही मिल गया था। जिस भगवान को पाने के लिए योगियों ने हिमालय की गुफाओं में जाकर योग किया होगा, मीरा को वही भगवान कभी सपनों में मिल जाया करते तो कभी विष का प्याला होठों से छूते हुए मिल जाया करते। तभी तो मीरां ने कहा था- 'सहज मिले अविनाशी'। सहजता को बनाइए समाधि का साधन ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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