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या, क्या ऐसा कोई सुकून है जो कि आप विरासत के रूप में अपने बच्चों को दे कर जा सकेंगे? ज़मीन दे दोगे दो-चार बीघा, प्लॉट दे दोगे, दो-चार मकान दे दोगे । एक- एक दूकान पर दो-दो ताले लगा कर दोनों भाइयों में बाँट दोगे । पर, इसके अलावा व्यक्ति ने अपने जीवन में शांति कितनी पाई, अध्यात्म में कितनी उन्नति हुई और वह परमेश्वर के रास्ते पर कितना चला? यह प्रश्न फिर भी बना रह जाएगा ।
शायद ये मुँहपत्ती बाँधने वाले, तिलक लगाने वाले व्यक्ति केवल इतना कह सकते हैं कि जीव न मरे इसलिए कपड़ा बाँध लिया और माथे पर ठंडक आ जाए इसलिए तिलक लगा कर किसी मूर्ति की पूजा कर ली । मूर्ति की पूजा करना अलग बात है और परमेश्वर की पूजा करना अलग बात है । मूर्ति की पूजा करने के लिए आपका पुण्यात्मा होना ज़रूरी नहीं है लेकिन परमेश्वर की पूजा करने के लिए आपका निष्पाप होना पहली अनिवार्यता है। मूर्ति के मन्दिर में व्यक्ति को जाने से नहीं रोका जा सकता है, पर परमेश्वर के मन्दिर में अगर आपके हाथ उजले नहीं हैं तो वहाँ से निकाल दिए जाओगे । इसलिए हर व्यक्ति अपनी-अपनी ज़िंदगी के लिए फैसला करता हुआ चले कि वो आखिर जिस दिन इस शरीर को छोड़ कर जाएगा परमेश्वर के दरबार में, तो क्या उसके पास वो चेहरा वो मुख-मुद्रा है कि वो परमेश्वर को जाकर अपना चेहरा दिखा सके?
फैसला किया जाना चाहिए कि शांति चाहिए या सफलता चाहिए । आज पहले फैसला करना और उसके बाद दुकान जाना। पहले फैसला करना और उसके बाद मंदिर जाना । और जब तक फैसला न हो तब तक दोनों जगह को छोड़ कर, शाम को यहाँ अकेले में आना और बैठ कर चिन्तन करना । चिन्ता - विन्ता बहुत कर ली, अब चिन्ता नहीं चिन्तन कर के देखो तो पता चलेगा कि आप अपनी ज़िंदगी के लिए कौनसा रास्ता चाहते हैं । मैं भी चाहूँ तो आज पूरे विश्व में फैल सकता हूँ, ईश्वर ने हमें वो काबिलियत दी है कि पूरे विश्व में छा सकते हैं । पर जिस आदमी ने अपने जीवन के लिए फैसला कर लिया हो कि मुझे ईश्वर के मार्ग पर चलना है और ईश्वर के मार्ग पर चलने के
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निर्णय कीजिए - शांति चाहिए या सफलता ?
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