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________________ दाँई टाँग खींचेगी और दूसरी पत्नी तुम्हारी बाँई टाँग। यह टाँग खिंचाई बड़ी महंगी चीज है। तुम जीवनभर अशांत-अशांत-अशांत बने रहोगे। जब तक कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के लिए यह फैसला नहीं कर लेगा कि मुझे शांति चाहिए या सफलता, तब तक वह कभी शांति पाने के लिए साधना-शिविर में आ जाएगा और सफलता पाने के लिए फिर से व्यापार में चला जाएगा। व्यापार में फिर निष्फल हो जाने पर फिर साधना-शिविर में आ जाएगा शांति पाने के लिए। नतीज़ा यह निकलेगा कि हर आदमी दो नौकाओं पर एक साथ सवारी करना चाहेगा। आप फैसला कर लें कि आपको पत्नी चाहिए या परमेश्वर? पत्नी चाहिए तो परमेश्वर की माला जपने की कोई जरूरत मैं नहीं समझता और अगर परमेश्वर चाहिए तो पत्नी को नम्बर दो बनाना पड़ेगा। दोनों का मज़ा अगर लेना चाहते हो, तो बन्दा न इधर का रहेगा न उधर का, धोबी का गधा न घर का रहेगा न घाट का। लोगों की हालत बहत पतली होती जा रही है। लोग अपने जीवन में अपने नज़रिए को साफ नहीं रख रहे हैं कि आखिर वे अपने जीवन में कौन-सा परिणाम चाहते हैं? जब तक कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के लिए यह फैसला न कर लेगा तब तक थोड़ा-थोड़ा धर्म भी होता रहेगा, थोड़ा-थोड़ा पाप भी चलता रहेगा। रोज़ थोड़े-थोड़े कीचड़ में नहाते रहेंगे, रोज़ थोड़े-थोड़े बाहर भी आते रहेंगे। हालत तो वही होने वाली है जो कि किसी हाथी के द्वारा रोज़-रोज़ तालाब में गंगा-स्नान किया जाता है, और जैसे ही तालाब से निकल कर हाथी बाहर आता है वापस कीचड़ को अपनी ही पीठ पर लोटाया करता है। रोज़ हाथी स्नान करता है और रोज़ वही कीचड़ अपनी पीठ पर डालता रहता है। जिंदगी भर स्नान होता रहता है और जिंदगी भर आदमी कीचड़ में जाता रहता है। परिणाम-स्वरूप अस्सी वर्ष के किसी बूढ़े व्यक्ति से पूछा जाए कि आपको अपने जीवन में क्या मिला? हो सकता है कि कोई तीस वर्ष का व्यक्ति इस बात का जवाब न दे पाए कि उसके हाथ में, उसकी हथेली में ज़िन्दगी का क्या परिणाम है। इसलिए आप अपने दादा से पूछे कि, 'दादाजी आपकी हथेली में आपके जीवन का क्या परिणाम है?' क्या ऐसा कोई परिणाम है, ऐसा कोई अनुभव है, क्या ऐसी कोई समृद्धि या शांति है शांति पाने का सरल रास्ता १२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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