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ध्यान इस धरती पर स्वर्णिम सूर्योदय है । ध्यान हमें सिखाता है घर आने की बात, नीड़ में लौटने की प्रक्रिया । चित्त परमाणुओं की ढेरी है । परमाणु जीवन-जीवी नहीं होते । ध्यान चित्त को चैतन्य बनाने की गुंजाइश है । लोग समझते हैं कि ध्यान मृत्यु है, वह हमें अपनी चित्तवृत्तियों को रोकना सिखाता है। जबकि ऐसा नहीं है । ध्यान से बढ़कर कोई जीवन नहीं है । वह हमें रुकना या रोकना नहीं सिखाता, वरन लौटना सिखाता है । वह तो यह प्रशिक्षण देता है कि इसमें गति करो । जितनी तेज रफ्तार पकड़ सको, उतनी तेज पकड़ लो । जब स्वयं में समा जाओगे, तो स्थितप्रज्ञ बन जाओगे । जहाँ अभी हम जाना चाहते हैं, वहाँ गये बिना ही सब कुछ जान लेंगे। उसकी आत्मा में प्रतिबिम्बित होगा सारा संसार । परछाई पड़ेगी संसार के हर क्रिया-कलाप की उसके घर में पड़े आईने में । यह असली जीवन है । यह वह जीवन है, जिसमें दौड़-धूप, दंगे-फसाद, आतंक - उग्रवाद की लूएँ नहीं चलतीं । यहाँ तो होती है शान्ति, परम शान्ति,
सदाबहार | O
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