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राग-द्वेष से छूटने के लिए कोई सूर्य की आतापना लेता है तो कोई शीर्षासन करके खड़ा हो जाता है। यह मात्र खूटे बदलने जैसा हो गया । शीर्षासन करने से कभी राग टूटता है ? सूर्य की आतापना लेने से कभी मोह जलता है ? पहले पैर के बल चलते थे, अब शीर्ष के बल खड़े हैं। पहले चूल्हे की आग के पास बैठते थे, अब सूर्य की गरमी ले रहे हैं। पर बदला कुछ नहीं। यदि चित्त में वीतराग और वीतद्वेष के भाव उठ गये तो शीर्षासन दो कोड़ी का भी नहीं रहेगा। हमें गिराना है राग को, न केवल राग को; अपितु द्वेष को भी।
____ आतापना का सम्बन्ध हम जोड़ लेते हैं काया से। जबकि इसका सम्बन्ध है आत्मा से । आत्मा को तपाने का नाम ही आतापना है। शीर्षासन सिर को आसन बनाना नहीं है, वरन् दुनिया के आसन से स्वयं को ऊपर करना है। आतापना या शीर्षासन आदि का जैसा आम अर्थ है, उससे काययोग सधेगा। काययोग आत्मयोग नहीं है। आत्मा पार है मन के, वचन के, काया के। ये तीनों चट्टानें हैं आत्म-स्रोत की। इनसे कैसा राग! सबसे पार होकर निरखो स्वयं को, अपने आपको। ।
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