SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य का मन सदा संसरणशील रहता है । अतः मन की मृत्यु का नाम ही मुनित्व की पहचान है । मन प्रचण्ड ऊर्जा का स्वामी है। यदि इसके व्यक्तित्व का सम्यग्बोध कर इसे सृजनात्मक कार्यों में लगा दिया जाए, तो वह आत्मदर्शन/परमात्म-साक्षात्कार में अनन्य सहायक हो सकता है । इसे प्रशस्त जीवन की स्वतिप्रद छाया बनाना स्वयं के सिद्धत्व और सम्यक्त्व का मन को दो चूँट रस पिलाना है। सत्य की मुखरता आत्मा की पवित्रता से है । (मन के मौन हो जाने पर ही निःशब्द सत्य निर्विकल्प समाधि झंकृत होती है। अतः बाह्याभ्यन्तर की स्वच्छता वास्तव में कैवल्य का आलिंगन है ( स्वयं को जगाकर महामुनित्व का महोत्सव आयोजित करना स्वयं में सिद्धत्व की प्राण-प्रतिष्ठा है।) ___मन से स्वयं के तादात्म्य का छटना ही ध्यान है । मन की मृत्यु का नाम ही जीवन में मौन एवं समाधि का आयोजन है । ___ मन वह चौराहा है जिस पर विचारों के वाहन गुजरते रहते हैं । यदि मनुष्य स्वयं को यातायात नियन्त्रक के रूप में स्वीकार कर ले तो विचारों के साथ उसका तादात्म्य और अहं-भाव तो समाप्त होगा ही साथ ही विचारों को सही दिशा दर्शन भी होगा। मन की एकाग्रता के लिए जागरूकता और रसमयता अनिवार्य है। मन की रसमयता का सहज परिणाम ही एकाग्रता है। जीवन का अन्तर्निहित मूल्य रस-मुग्धता में है। 0 [ ४१ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003958
Book TitleMain to tere Pas Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1990
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy