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________________ सम्यक्त्व सत्य की न्याय - तुला है । जीवन की मौलिकताओं और नैतिक प्रतिमानों को उज्ज्वलतर बनाने के लिए यह अप्रतिम सहायक है । सचमुच, जिसके हाथ सम्यक्त्व - प्रदीप से शून्य हैं, वह मानो चलता-फिरता 'शव' है, अँधियारी रात में दिग्भ्रान्त - पान्थ है। साधक के कदम बढ़े जिनमार्ग पर, अन्धकार से प्रकाश की ओर। मुक्त हो जीवन की उज्ज्वलता, मिथ्यात्व की अँधेरी मुट्ठी से । ★ हम अपने सच्चे स्वरूप को भूलने से ही बन्धन में पड़े हुए हैं और यही भूल हमारी परतन्त्रता का आधार है । / असत्य से प्यार करना व्यक्ति का भोलापन है । सत्य प्रतीति का दीया जल जाने पर मिथ्यात्व के अंधकार को विदा होना पड़ता है । कथनी और करनी की एकरूपता ही अध्यात्म की अभिव्यक्ति है । बोधपूर्वक किया गया आचरण किसी का अनुकरण नहीं वरन् सत्य का समर्थन है " बातों के बादशाह तो बहुत होते हैं, लेकिन आचरण के महावीर बहुत कम । कथनी की यमुना और करनी की गंगा का संगम ही जीवन का तीर्थ - राज प्रयाग है । O Jain Education International [ ३६ ] For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003958
Book TitleMain to tere Pas Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1990
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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