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(अध्यात्म कर्म-क्षरण का अभियान है। जीवन की उत्पत्ति से लेकर महामुनित्व की प्रतिष्ठा का सारा वृतान्त इसमें आकलित है। चेतना की जागरूकता ही आरोग्य-लाभ है। कार्मिक परिवेश के साथ चेतना की साझेदारी मैत्री विपर्यास है। आत्मा एकाकी है, अतः और तो क्या कर्म भी उसके लिए पड़ोसी है, घरेलू नहीं। परकीय पदार्थों से स्वयं को अतिरिक्त देखने का नाम ही भेद-विज्ञान है।
भेद-विज्ञान एक प्रकार से समीक्षा-ध्यान है। यह भीतरी समझ है, विवेक का परिवेश है ) यही तो वह सहारा है, जिससे चींटी रेगिस्तान की रेती में पड़े चीनी के दाने को जुटा कर अपने घर में ले आती है। माटीसोना/नीर-क्षीर/जड़-चेतन के बीच विभाजन-रेखा खींचने वाली प्रज्ञा-डण्डी को हाथ में थामना अध्यात्म के जादूई डण्डे की उपलब्धि है। ।
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