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कदम पर मृत्यु की से उखाड़ फेंकना
मोक्ष जीवन की आखिरी मंजिल है । जीवन के हर पदचाप सुनना लक्ष्य के प्रति होने वाली सुस्ती को जड़ है / साधक को आत्म-सदन की रखवाली के लिए जगी आँख चौकन्ना रहना चाहिये । अन्तर गृह को सजाने-सँवारने के लिए किया जाने वाला श्रम अपने मोक्षनिष्ठ व्यक्तित्व को अमृत स्नान कराना है । जीवन की विदाई से पहले अन्तर्यात्रा में अपनी निखिलता को एकटक लगाए रखना स्वयं के प्रति वफादारी है ।
अनासक्ति साधना-जगत की सर्वोच्च चोटी है और इसे पाने के लिए मृत्यु की प्रतीति अनिवार्य है ।
1 जीवन, जन्म एवं मृत्यु के बीच का एक स्वप्नमयी विस्तार है | स्वप्नमुक्ति का आन्दोलन ही संन्यास है । संन्यास जीवन-मुक्ति का मोह एवं मूर्च्छा की मृत्यु ही दीक्षा की अभिव्यक्ति है ।।
प्रत्येक मानव मृत्यु की कतार में आगे-पीछे खड़ा है । अपनी मृत्यु के क्रम को हर क्षण स्मरण करना जीवन का संयस्त अनुष्ठान है । अनासक्ति का ह्रास ही संन्यास का विकास है, भौतिक कर्तव्यों का पालन करते हुए संसार में अनासक्त जीवन जीना अध्यात्म यात्रा है ।
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