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अध्यात्म जीवन का चरम शिखर है। आत्मविश्वास एवं सत्यबोध का स्वामी ही इस शिखर की ओर कदम बढ़ा सकता है) अध्यात्म की मौलिकताओं एवं नैतिकता के प्रतिमानों को जीवन में ढालना ही आत्म-विजय की प्रतीक है ।।
जिसने मन, वचन और काया के द्वार बन्द कर लिए हैं, वही सत्य का पारदर्शी और मेधावी साधक है) |उसे इन द्वारों पर अप्रमत्त चौकी करनी होती है । 1 उसकी आँखों की पुतलियाँ अन्तर्जगत के प्रवेश-द्वार पर टीकी रहती हैं । बहिर्जगत के अतिथि इसी द्वार से प्रवेश करते हैं । अयोग्य और अनचाहे अतिथि द्वार खटखटाते जरूर हैं, किन्तु वह तमाम दस्तकों के उत्तर नहीं देता, मात्र सच्चाई की दस्तक सुनाता है। वह उन्हीं लोगों की अगवानी करता है, जिससे उसके अंतर-जगत का सम्मान और गौरव वर्धन हों। ।
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