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मृत्यु मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। मरना मेरी शहीदी है । शहीदी कहीं छलावा न हो जाये, अतः जीवन को गहराई से चूमें। यही तो गलियारा है उस तक पहुँचने का। यही द्वार है अज्ञय में प्रवेश का। मृत्यु भी आखिर होगी कहाँ ! जर्जर चोले को बदलना ही क्या मृत्यु है ? एक और जीवन भी तो है रोजमर्रा के जीवन से हटकर । जिसे मृत्यु मार नहीं सकती। मैं भी नहीं मार सकता। फिर आँखमिचौनी केसी क्षणभंगुरता की शाश्वतता के साथ। जीवन की बाती पर ज्योति की शाश्वतिका पुलकित है। ज्योति का निधम और निष्कम्प होना ही निर्वाण की शाश्वत मुस्कान है। गोताखोर खोजें शाश्वत को, शाश्वत के लिए, शाश्वत में। ।
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