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हमारे कार्यकलापों का परिसर बहुत बढ़-चढ़ गया है। उसकी सीमाएँ अन्तरिक्ष तक विस्तार पा चुकी हैं। मिट्टी, खनिज-पदार्थे, जल, ज्वलनशील पदार्थ, वायु, वनस्पति आदि हमारे जीवन की आवश्यकताएँ हैं। किन्तु इनका छेदन-भेदन-हनन इतना अधिक किया जा रहा है कि दुनिया से जीवित प्राणियों की अनेक जातियों का व्यापक पैमाने पर लोप हुआ है।
प्रदूषण-जैसी दुर्घटना से बचने के लिए पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों की रक्षा अनिवार्य है। इसी प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि के प्रदूषणों से दूर रहने के लिए अस्तित्व-रक्षा/अहिंसा अपरिहार्य है।
मनुष्य को पृथ्वी के सारे तत्व पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिये । वह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, जीव-जन्तु, मनुष्य आदि पर्यावरण के किसी भी अङ्ग को न नष्ट करे, न किसी और से नष्ट करवाये और न ही नष्ट करने वाले का समर्थन करे। वह संयम में पराक्रम करे। जो पर्यावरण का विनाश करता है, वह हिंसक है। समझदार लोग हिंसा को कतई पसन्द नहीं करते । संघर्षमुक्त समत्वनियोजित स्वस्थ पर्यावरण विश्व-शान्ति कायम/ कामयाब करने के लिए वह पहल है, जिसमें चूक की प्रेत-छाया सम्भावित नहीं है। सम्पूर्ण विश्व के साथ दोस्ती का हाथ फैलाना अध्यात्म एवं समाधि के शिखरों को पाने के लिए तलहटी पर आने की तैयारी है। 0
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