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जीवन एक प्रतिस्पर्धा है। प्रत्येक व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी है । इसलिए जीवन की प्रतिस्पर्धा गलाघोंट संघर्ष का रूप लेती है। प्रार्थना की वेला में व्यक्ति संसार के कल्याण की कामना करता है, लेकिन रोजमर्रा जिन्दगी में वह दूसरों को पछाड़ने का ही काम कर रहा है। जबकि हमें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिये, जिससे किसी दूसरे व्यक्ति की भावना को ठेस पहुँचे ।
स्वयं के दोषों का निरीक्षण और दूसरों के गुणों का पर्यावलोकन करना उज्ज्वल व्यक्तित्व की पहचान है। दुर्जन में भी दबे/छिपे गुण को ढूँढ/परख निकालने की जौहरी-नजर ही स्वयं की सज्जनता है। रावण में भी भगवान् का सौम्य दर्शन कर लेना पराशक्ति की प्राप्ति का पूर्व अभियान है।) __यदि किसी व्यक्ति में कोई दोष दिखाई पड़े तो उसे अकेले में उस दोष की जानकारी देनी चाहिए। पीठ पीछे किसी व्यक्ति के दोष की बातें करना सबसे बड़ा दोष है।
जीवन की सार्थकता आन्तरिक दोषों को समझकर उनका निवारण करने तथा जीवन में सद्भावना को प्रतिष्ठित करने में है ,
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