________________ पुत्तदारपरीकिण्णो, मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा पस्तिप्पड़ // 9 // अज्ज आहे गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुओ। जइऽहं रमंतो परिआए. सामण्णे जिणदेसिए // 49 // देवयोगसमाणो य, परिआओ महेसिर्ण। रयाणं अस्याणं च, महानरयसारिसो॥२॥ अमरोवर्म जाणिअ सुक्खमत्तम, रस अ सुक्खमुत्तम, स्याण परिआइतहाऽरयाण। निरओवर्म जाणि दुक्खमुत्तम, रमिज तम्हा परिआइपंडिए // 2 // धम्माउ भट्ठ सिरिओ अवेयं, जन्नग्गिविज्झाअमिवऽप्पते। हीलंति णं दुधिहिअंकुसीला, दादड़िों घोर विसंवनागं // 3 // इहेवऽधम्मो अयसो अकित्ती, दुनामधिज च पिहजणंमि। चुअस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, संभिनवित्तस्स य हिदुओ गई // 4 // भुंजित्नु भोगाई पसज्झचेअसा, तहाविहं कटु असंजमं बहुं / गई च गच्छे अणभिझिअं दुह, बोही असे नो मुलहा पुणो पुणो // 5 // इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो, दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो। पलिओवमं सिसह सागरोधर्म, किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ? ॥६॥न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सइ, असासया भोगपिवास जंतुणो।न मे सरीरेण इमेणऽपिस्सइ, अविस्सई जीविअपजण गे॥७॥ जस्सेवमापा उहविल निच्छिओ, चइज देह नहुधम्मसासणं / तं तारिस नो पइलंति इंदिया, उविंतवाया वसुदंसणं गिरिं // 8 // इवेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो, आय उवार्य विविहं विभाणिया। काएण वाया अदु माणसेणं, निगुनिगुतो जिणषयणमहिद्विजासि ॥९॥ति मि, रहरकचूला 1 // चूलियं तु पवक्खामि, सुयं केवलिमासियं। जं सुणितु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पजए मई // ५००॥अणुसोअपहि. अबहुजणंमि, पडिसोअलवलक्खेणं / पडिसोअमेव अप्पा, दायको होउकामेणं // 1 // अणुसोअसुहो लोओ, पडिसोओ आसवो सुविहियाण / अणुसोओ संसारो, पडिसोओ तस्स उत्तारो // 2 // तम्हा आयारपरकमेणं, संवरसमाहिबहुलेणं / चरिया गुणा य नियमा य, हुंति साहूण दवा ॥३॥अनिएअवासो समुआणचारिआ, अन्नायउंछं पइरिकया या अप्पोचही कलहविवाजणा य, विहारचरिआइसिर्ण पसत्था // 4 // आइन्नओमाणविवज्जणा य, ओसन्नदिहाहडभत्तपाणे। संसटुकप्पे विजणा य, ओसन्नदिद्वाहभत्तपाणे / संसट्ठकप्पेण चरिज भिक्खू, तजायसंसट्ट जई जइजा // 5 // अमजमसासि | अमच्छरीआ, अभिक्खणं निधिगई गया या अभिक्खणं काउस्सग्गकारी, सज्झायजोगे पयओ हविजा॥६॥ण पडिन्नविजा सयणासणाई. सिज निसतह भत्तपाणं गामे कले वा AM नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिपि कुजा॥७॥ गिहिणो आवडिन कुज्जा, अभिवायणदणपृअणं वा / असंकिलिद्वेहि समं यसिज्जा, मुणी चरित्तस्स जओ नहाणी ॥८॥ण या - लभेजा निउणं सहायं. गुणाहियं वा गुणओ समंवा / इकोऽवि पावाई विवजयंतो, विहरिज कामेसु असजमाणो ॥९॥संवच्छरं वाऽवि परं पमाण, पीयं च वासं न तहिं पसिजा / सुत्तस्स मोण चरिज भिक्खू सुत्तस्स अस्थो जह आणवेइ // 510 // जो पुत्ररत्तावररत्तकाले, संपेहए अप्पगमप्पगेणं / कि मे कडं किं च मे किच्चसेसं. किं सकणिजनसमायरामि? // 1 // किं मे परोपासइकिंच अप्पा, किंवाऽहं खलियं न विवजयामि / इच्चेच सम्म अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबंध कुज्जा ॥२॥जस्थेव पासे कइ एप्पउत्तं, काएणवाया अदु माणसेणं / तत्थेव धीरो पडिसाहरिजा, आइनओ खिप्पमिव क्सलीणं ॥३॥जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स, घिईमओ सप्पुरिसस्स निचं। तमाह लोए पडिबुद्धजीवी, सोजीआई संजमजीविएणं ॥४॥अप्पा खल सययं रक्खियो, सबिदिएहिं सुसमाहिएदि। अरक्खिओजाइपहं उबेइ,सुरक्खिजोसबहाण मुच्चइ॥५१५॥त्ति बेमि, विवित्तचरिआ चूला२॥सुत्राणि 212 // दसवेयालियं॥