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________________ 9414 सया नवसमाहिए ॥४५७॥ चउत्रिहा खलु आयारसमाही भवइ, तंजहा नो इहलोगट्टयाए आयारमहिडिजा नो परलोगट्टयाए आयारमहिडिजा नो कित्तिवण्णसदसिलोगट्टयाए आयार महिडिजानन्नन्थ आरहनेहिं हेऊहिं आयास्महिडिजा चउत्थं पयं भवइ | २०| भवइ य इत्थ सिलोगो जिणवयणरए अतिंतिणे, पडिपुन्नाययमाययट्ठिए। आयारसमाहिसंबुडे, भवइ य देने भावसंघ ॥ ४५८ ॥ अभिगम चउरो समाहिओ, सुविदो मुसमाहिअप्पओ विउलहिअं सुहावहं पुणो, कुमइ य सो पयलेममप्पणो ॥ ९॥ जाइमरणाओ मुबई, इत्थं च चएइ सबसो सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महटिए ॥ ४६० ॥ ति बेमि, अ० ९ ४० ४ ॥ विषयसमाहीणामज्झयणं समत्तं ९ ॥ निक्खम्ममाणाइ य बुद्धवयणे, नियं चित्तसमाहिओ हविना इत्थीण वसं न यावि गच्छे, वंतं नो पडिआय जे स भिक्खु ॥ १ ॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए। अगणिसत्यं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावर जे स भिक्खु ॥ २ ॥ अनिलेश न वीए न बीयावए. हरियाणि न छिंदे न छिंदावए बीयाणि सया विवजयंती, सच्चित्तं नाहारए जे स भिक्खु ॥ ३ ॥ वहणं तसथावराण होइ, पुढवीतणकट्टनिस्सियाणं तम्हा उद्देसियं न भुंजे, नोऽवि पए न पयावए जे स भिक्खु ॥ ४ ॥ रोइयनायपुत्तवयणे, अत्तसमे मनिज छप्पि काए। पंच य फासे महवयाई, पंचासवसंवरे जे स भिक्खु ॥ ५॥ चत्तारि वमे सया कसाए, घुवजोगी हविज्ज बुद्धवयणे। अहणे निजायरूवरयए, गिहिजोगं परिवज्जए जे स भिक्खू ॥ ६ ॥ सम्मदिट्ठी सया अमूढे, अस्थि हु नाणे तवे संजमे य तवसा धुण्ड पुराणपावर्ग, मणवयकायसुसंकुडे जेस भिक्खु ॥ ७ ॥ तहेब असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साइमं लभित्ता । होही अट्टो सुए परे वा तं न निहे ननिहावए जे स भिक्खु ॥ ८ ॥ तहेब असणं पाणगं वा, विविहं साइमं साइमं लभित्ता । छंदिय साहम्मियाण मुंजे, भुच्चा सज्झायरए जे स भिक्खु ॥ ९॥ न य बुग्गाहियं कहं कहिजा, नय कुप्पे निहुईदिए पसंते संजमे धुवं (च) जोगेण जुत्ते, उवसंते अविहेडए जे स भिक्खु ॥४७०॥ जो सहइ हु गामकंटए, अकोसपहारतजणाओ य भयभेरवसदसप्पहासे, समसु. हदुक्ख सहे यजेस भिक्खु ॥ १ ॥ पडिमं पडिवजिआ मसाणे, नो भायए भयमेरवाई दिस्स विविहगुणतवोरए य निचं, न सरीरं चाभिकखए जे स भिक्खु ॥ २ ॥ असई बोसट्टचत्तदेहे, अकुडे व हुए लूसिए वा पुढविसमे मुणी हविज्ञा, अनिआणे अकोउले जे स भिक्खु ॥ ३ ॥ अभिभूअ कारण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं विइत्तु जाईमरणं महभयं तवे रए सामणिए जे स भिक्खु ॥ ४ ॥ नृत्यसंजए पायसंजए, वायसंजए संजईदिए। अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा, सुत्तत्थं च विआणइ जे स भिक्खु ॥ ५॥ उवहिंमि अमुच्छिए अगिदे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए । कयविकयसंनिहिओ विरए. सबसंगावगए य जे स भिक्खु ॥ ६ ॥ अलोल भिक्खु न रसेसु गिज्झे, उंछं चरे जीविय नाभिकखे। इहिंद च सकारणपूयणं च चए ठियप्पा आणि जे स भिक्खु ॥ ७॥ न परं वइजासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पिज्ज न तं वइजा जाणिय पत्तेयं पुण्णपावं, अत्ताणं न समुकसे जे स भिक्खु ॥ ८ ॥ न जाइमत्ते न य रुपमते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते मयाणि सद्वाणि विवज्जइत्ता (तो), धम्मज्झाणरए य जे स भिक्खू ॥ ९ ॥ पवेयए अजपर्यं महामुणी, धम्मे ठिओ ठावयई परंपि। निक्खम्म वज्जिज्ज कुसीललिंगं, न यावि हासं कुहए जे स भिक्खू ॥ ४८० ॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निचहिअअप्पा छिंदित्तु जाईमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गईं ॥४८१॥ ति बेमि, सभिक्खुणामअज्झयणं १० ॥ इह खलु भो ! पढइएणं उप्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चैव हृयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभूआई इमाई अडारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहिअढाई भवति तंजहा- हंभो ! दुस्समाए दुप्पजीवी, लहुसगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा, भुजो य साइबहुला मणुस्सा, इमे य में दुक्खे न चिरकालोबट्टाई भविस्सई ५ ओमजणपुरकारे वंतस्स य पडिआयणं, अहरगइवासोवसंपया, दुइहे खलु भो ! गिट्टीणं धम्मे गिवासमज्झे वसंताणं, आयके से बहाय होइ, संकप्पे से वहाय होइ १० सोवकेसे मिवासे निश्वके से परिआए, बंधे गिवासे मुक्ले परिआए, सावजे गिहवासे अणवज्जे परियाए, बहुसाहारणा गिट्टीणं कामभोगा, पत्तेयं पुण्णपावं १५ अणिच्चे खलु भो! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले, बहुं च खलु भो ! पार्व कम्मं पगडं, पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुष्ठि दुच्चिन्नाणं दुष्पडिकंताणं वेदत्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता, अद्दारसमं पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो । २१ । जया य चयई धम्मं, अणज्जो भोगकरणा से तत्थ मुच्छिए वाले, आयई नावबुज्झइ ॥ ४८२॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं सवधम्मपरिन्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ३ ॥ जया य बंदिमो होइ, पच्छा होइ अवदिमो देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पइ ॥ ४ ॥ जया य पूइमो होइ. पच्छा होइ अपूइमो राया व रज्जप-भट्ठो, स पच्छा परितप्पड़ ॥ ५ ॥ जया य माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो । सिडिव कब्बडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ६ ॥ जया य थेरओ होइ, समइकंतजुङ्घणो । मच्छुब गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पइ ॥ ७ ॥ जया य कुकुटुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मद हत्थीव बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पड़ ॥ ८ ॥ १२५४ दशवैकालिकंसूत्रं चूलिका-१ मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003944
Book TitleAagam Manjusha 42 Mulsuttam Mool 03 Dasveyaliyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages15
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size10 MB
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