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बोसिरिया अतु एवं जढा दोसा ॥ ८ ॥ आयरियवयण दोसा दुबिहा नियमा उ संजमायाए। वचह न तुज्झ सामी असंखर्ड मंडलीए वा ॥ ९ ॥ कोऊहल आगमणं संखोभेणं अकंठ गमणाई । ते चैव संखडाई बसहिं व न दंति जं वनं ॥ १९० ॥ भारेण वेयणाए न पेहए थाणुकंट आयाए। इरियाइ संजमंमि य परिगलमाणेण छकाया ॥ १ ॥ सावयतेणा दुविहा विराहणा जाय उबहिणा उ विणा तणअग्गिगहणसेवण वियालगमणे इमे दोसा ॥ २ ॥ पविसणमग्गणठाणे वेसित्थिदुर्गुछिए य बोद्धवे सज्झाए संचारे उच्चारे चेव पासवणे ॥ ३ ॥ साव या दुविहा चिराहणा जा य उबहिणा उ विणा । गुम्मियगहणाऽऽहणणा गोणाईचमढणा चैव ॥ ४ ॥ फिडिए अण्णोष्णारण तेण य राजो दिया य पथमि। साणाइ बेसकुत्थिअ तवोवणं मूसिआ जं च ॥ ५ ॥ अप्पडिलेहिअकंटाविलंमि संथारगंमि आयाए। छकायसंजमंमि य चिलिणे सेहऽमहाभावो ॥ ६ ॥ कंटगथाणुगवालाविलंमि जइ बोसिरेज्ज आयाए। संजमओ उक्काया गमणे पत्ते अहंते य ॥ ७॥ मुत्तनिरोहे चक्खू वचनिरोहेण जीवियं चयइ उड्ढनिरोहे कोट्टं गेलनं वा भवे तिसुवि ॥ ८ ॥ जइ पुण वियाल पत्ता पए व पत्ता उवस्सय न लभे । सुनघरदेउले वा उज्जाणे वा अपरिभोगे ॥ ९ ॥ आवाय चिलिमिणीए रण्णे वा निम्भए समुद्दिसणं सभए पच्छनासइ कमढ्य कुरुया य संतरिआ ॥ २०० ॥ कोट्ठग सभा व पुवि काले वियाराइभूमिपडिलेहा पच्छा अइति रत्ति पत्ता वा ते भवे रन्ति ॥ १ ॥ गुम्मियभेसण समणा निष्भय बहिठाण वसहिपडिलेहा। सुन्नघर पुत्रभणिअं कंचुग तह दारुदंडेणं ॥ २ ॥ संथारगभूमितिगं आयरियाणं तु सेसगाणेगा। रुंदाऍ पुप्फइन्ना मंडलिजा आवली इयरे ॥ ३ ॥ संथारम्गहणाए बेंटिअउक्रखेवणं तु कायां संथारो घेत्तो मायामयविष्यमुक्केणं ॥ ४ ॥ पोरिसिपुच्छणया सामाइय उभय कायपडिलेहा साहणिये दुवे पट्टे पमज्ज भूमिं जओ पाए ॥ ५ ॥ अणुजाणह संथारं बाहुबहाणेण वामपासेणं कुकुडिपायपसारण अंतरंत पमज्जए भूमिं ॥ ६ ॥ संकोए संडास उवत्तंते य कायपडिलेहा दवाईउवओगं णिस्सासनिरंमणाऽऽलोयं ॥ ७ ॥ दारं जा पडिलेहे तेणभए दोण्णि सावए तिष्णि ज य चिरं तो दारे अण्णं ठावेत्तु पडिअरइ ॥ ८ ॥ आगम्म पडिकतो अणुपेहे जाव चोद्दसवि पुढे परिहाणि जा तिगाहा निधपमाओ जदो एवं ॥ ९॥ अतरंतो व निवजे असंथरंतो य पाउने एक गद्दभदिते दो तिष्णि बहू जह] समाही ॥२१०॥ वसहित्तिदारं । दुविहो य बिहरिया विहरिओ उ भयणा उ विहरिए होइ। संदिट्ठो जो विहरितो अविहरिअविही इमो होइ ॥ १॥ अविहरिअ विहरिओ वा जइ सड्ढो नत्थि नत्थि उ निओगो। नाए जइ ओसण्णा पविसंति तओ य पण्णरस ॥ ९५ ॥ मा० संविग्गमणुष्णाए अइंति अहवा कुले विरंचति । अण्णाउंछं व सहू एमेव य संजईवग्गे ॥ ६ ॥ एवं तु अण्णसंभोइयाण संभोइयाण ते चैव जाणित्ता निब्बंधं वत्यवेणं स उ पमाणं ॥ ७ ॥ असइ बसहीऍ बीसुं राइणिए वसहि भोयणागम्म । असहू अपरिणया वा ताहे वीसुं सहूवियरे ॥ ८ ॥ तिष्हं एकेण समं भत्तट्ठो अप्पणो अवढं तु पच्छा इयरेण समं आगमणविरेगु सो चेव ॥ ९ ॥ चेइयवंद निमंतण गुरूहिं संदिट्ट जो वऽसंदिsो । निब्बंध जोगगहणं निवेय नयणं गुरुसमासे ॥ १०० ॥ अविहरियमसंदिट्ठी चेइय पाहुडियमेत्त गेव्हंति पाउग्गपउरलंभे नऽम्हे किं वा न भुंजति ? ॥१॥ गच्छस्स परीमाणं नाउं घेत्तुं तओ निवेयंति। गुरुसंघाडग इयरे लद्धं नेयं गुरुसमीचं ॥ २ ॥ भा० मा वञ्चह गिव्ह गुरुजोगं ॥ एवइमं वा गिण्हह पज्जन्तं वा नियत्तह य भंते! अणिवेइए अ गुरुणो हिंडंताणं इमे दोसा ||१० १५॥ दरहिंडिय बुड्ढाई आगंतु समुद्दिस्संति जं किंचि । दवविरुद्धं च कयं गुरूहिं जंकिंचि वा भुत्तं ॥ १६५० ॥ एगागिसमुद्दिसगा भुत्ता उ पहेणएण दितो। हिंडणदडविणासो निद्रं महुरं च पुत्रं तु ॥ ३ ॥ भा० । सन्नित्ति भत्तट्टिय आवस्सग सोहेउं तो अइंति अवरण्हे अन्मुट्ठाणं दंडाइयाण गहणेकवयणेणं ॥ २ ॥ खुड्डलविगट्ठतेणा उन्हं अवरण्हि तेण उ पएवि । पक्खित्तं मोत्तूणं निक्खिवमुक्खित्तमोहेणं ॥ ३ ॥ अप्पा मूलगुणेसुं विराहणा अप्प उत्तरगुणेसु । अप्पा पासत्याइस दाणम्गहसंपओगोहा ॥ ४॥ भुंजह भुत्ता अम्हे जो वा इच्छे अभुत सहभोजं । स च तेसि दाउ अन्नं गेव्हंति वत्थष्वा ॥ ५॥ तिष्णि दिणे पाहुअं सबेसिं असइ बालबुड्ढाणं । जे तरुणा सग्गामे वत्यवा बाहि हिंडंति ॥ ६ ॥ संघाडगसंजोगो आगंतुगभ एयरे बाहिं । आगंतुगा व चाहिं वत्यवगभदए हिंडे ॥ ७ ॥ वित्थिष्णा खुड्डलिआ पमाणजुत्ता य तिविह वसहीओ पढमबिइयासु ठाणे तत्थ य दोसा इमे होंति ॥ ८ ॥ खरकम्मि वाणियगा कप्पडिअ सरक्वगा य बंठा य। संमीसावासेणं दोसा य हवंति णेगविहा ॥ ९॥ आवासगअहिकरणे तदुभय उच्चारकाइयनिरोहे। संजम आयविराण संका तेणे नपुंसित्थी ॥२२० ॥ आवासयं करिते पवंचए झाणजोगवाघाओ। असहण अपरिणया वा भायणभेओ य छक्काया ॥ १ ॥ सुत्तत्थऽकरण नासो करणे उचगाइ अहिगरणं। पासवणिअरनिरोहे गेलन्नं दिट्ठि उड्डाहो ॥ २ ॥ मा दच्छिहिंति तो अप्पडिलिहिए (थंडिले) दूर गंतु वोसिरति । संजम आयविराहण महणं आरक्खितेणेहिं ॥ ३ ॥ ओणयपमजमाणं द तेणेत्ति आहणे कोई। सागारिअसंघट्टण अपुमित्थी गेव्ह साहइ वा ॥ ४ ॥ ओरालसरीरं वा इत्थि नपुंसा बलावि गेच्हति। सावाहाए ठाणे निंते आवडणपढणाई ॥ ५॥ तेणोति मण्णमाणो इमोबि तेणोत्ति आवडइ जुद्धं । संजमआयविराहणभायणभेयाइणो दोसा ॥ ६ ॥ तम्हा पमाणजुत्ता एकेकस्स उ तिहत्यसँथारो भायणसंथारंतर जह बीसं अंगुला हुंति ॥ ७॥ मज्जा१२२६ ओघनिर्युक्तिः मुनि दीपरत्नसागर
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