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एन्धं नाणनं तमहं वोच्छं समासेणं ॥४॥ जयमाणा खलु एवं तिविहा उ समासओ समक्खाया। विहरताविय दुविहा गच्छगया निग्गया चेव ॥४॥५०जयमाणा विहरंता ओ. हाणा हिंडगा चउदा उ। जयमाणा तत्थ तिहा नाणट्ठा दसणचरिते ॥५॥ पत्तेयबुद्ध जिणकप्पिया य पडिमासु चेव विहरता। आयरिअथेरवसभा भिक्खू खुड्डा य गच्छंमि ॥६॥ ओहावंता दुविहा लिंग विहारे य होति नायत्रा। लिंगेणऽगारवासं नियया ओहावण विहारे ॥७॥ उवएस अणुवएसा दुविहा आहिंडया मुणेयवा। उवएस देसदसण थूभाई हुंतिणुवएसा ॥८॥ पुण्णमि मासकप्पे वासावासासु जयणसंकमणा । आमंतणा य भावे सुत्तत्थ न हायई जत्थ ॥९॥ अप्पडिलेहियदोसा वसही भिक्खं च दुाडहं होना। मालामंगलाणाण व पाउमगं अहव सझाओ ॥१३॥ तम्हा पुर्व पडिलेहिऊण पच्छा विहीएँ संकमणं । पेसेइ जइ अणापुच्छिउँ गणं तत्थिमे दोसा ॥१॥ अइरेगोवहिपडिलेहणाएँ कत्यवि गयत्ति तो पुच्छे। खेने पडिलेहेङ अमुगस्थ गयत्ति तं दुढें ॥२॥ तेणा सावय मसगा ओमऽसिवे सेह इस्थि पडिणीए। थंडिल्ड अगणि उट्ठाण एवमाई भवे दोसा ॥३॥ पश्चंति तावसीओ साक्यदुभिक्खनेणपउराई। णियगपट्ठाणे फेडणहरियाइ(हरिहरिय) पण्णीए ॥४॥ सीसे जइ आमंतइ पडिच्छगा तेण वाहिरं भावं। जइ इयरे तो सीसा तेवि सममि गच्छंति ॥५॥ नरुणा बाहिरभावं न य पडिलेहोवही न किइकम्म। मूलयपत्तसरिसया परिभूया पश्चिमो थेरा ॥ ६॥ जुण्णमएहि विहूर्ण जं जूहं होइ सुवि महालं। तं तरुणरहसपोइयमयगुम्मइअं सुहं हंतुं ॥७॥ थुइमंगलमामंतण नागच्छद जो य पुच्छिओ न कहे। तस्सुवरि ते दोसा तम्हा मिलिएसु पुच्छेजा ॥८॥ केई भणति पुर्व पढिलेहिअ एवमेव गंतवं । तं च न जुजब बसही फेडण आगंतु पडिणीए॥९॥ कयरी दिसा पसत्था ? अमुई सोसि अणुमई गमणं। चउदिसि ति दु एग वा सत्तग पणगं तिग जहण्णं ॥१४०॥अणभिग्गहिए वावारणा उ तत्य उ इमे न बावारे।बालं बुढ़मगी जोगिं वसहं तहा खमगं ॥१॥ हीलेज व खेलेज व कजाकजं न याणई बालो । सो वाऽणुकंपणिजो न दिति वा किंचि बालस्स ॥६८॥ भाप्यं । बढोऽणकंपणिजो चिरेण न य मग्गथंडिले पेहे। अहवावि बालबुड्ढा असमत्था गोयरतियस्स ॥९॥ पंथं च मासवासं उवस्सयं एचिरेण कालेणं। एहामात्तिन याणहर पण ठाणं च ॥ ७॥ तूरंतो य ण पेहे पंथं पाढडिओ न चिर हिंडे। विगई पडिसेहेइ तम्हा जोगिन पेसेन्जा ॥१॥ठवणकुलाणि न साहे सिट्ठाणि न देंति जा विराहणया। परितावण अणुकंपण तिण्हऽसमत्थो भये खमगो ॥७२॥ भा०। एए चेव हवेजा पडिलोमेणं तु पेसए विहिणा। अविही पेसिजते ते चेव तहिं तु पडिलोमं ॥२॥ सामायारिमगीए जोगमणागाढ खवग पारावे। वेयावच्चे दायण जुयलसमत्थं वसहियं वा ॥३॥ पंधुच्चारे उदए ठाणे भिक्खंतरा य वसहीओ। तेणा सावय वाला पच्चावायाय जाण विही ॥४॥ सो चेव उनिम्गमणे विही उ जो बनिओ उ एगस्स। दवे खेत्ते काले भावे पंथं तु पडिलेहे ॥७३॥भा०। कंटग तेणा वाला पडिणीया सावया य दवंमि। समविसमउदयथंडिल भिक्खायरि अंतरा खेत्ते ॥४॥ दियराउऽपञ्चवाए य जाणई सुगमदुग्गमे काले। भावे सपक्खपरपक्खपेडणा निण्हगाईया ॥७५॥ भाष्य। सुत्तत्थं अकरिता भिक्खं काउंअइंति अबरण्हे। विइयदिणे सज्झाओ पोरिसिअद्धाइ संघाडो ॥५॥ खेतं तिहा करेत्ता दोसीणे नीणिअंमि अ वयंति । अण्णो लदो बहुओ थोवं दे मा य रूसेजा ॥६॥ अहव ण दोसीणं चिझ जायामो देहि दहि घयं खीरं। खीरे घयगलपेजा थोवं थोवं च सपथ ॥७॥ मज्झण्हि पउरभिक्खं परिताविअपिजजूसपयकढिअं। ओभट्ठमणोभहूँ सम्भाइ जं जत्थ पाउम्गं ॥८॥ चरिमे परितावियपेजजस आएस अतरणहाए। एकेकगसंजुत्तं भत्त₹ एकमेकस्स ॥९॥ ओसह भेसज्जाणि य कालं च कुले य दाणमाईणि। सग्गामे पेहिता पेहति ततो परम्गामे ॥१५०॥ चोयगवयणं दी पणीयगहणे य नणु भवे दोसा। जुजइ तं गुरुपाहुणगिलाणगट्ठा न दप्पट्ठा ॥१॥ जइ पुण खदपणीए अकारणे एकसिपि गिण्हेजा। तहि दोसा तेण उ अकारणे खदनिहाई ॥२॥ एवं-रुइए थंडिल क्सही देउलिअसुण्णगेहमाईणि। पाओगमणुण्णवणा वियालणे तस्स परिकहणा ॥३॥ सिंगक्खोडे कलहो ठाणं पुण नेव (प० नस्थि) होइ चलणेसुं। अहिठाणि पोट्ट रोगो पुच्छमि य फेडणं जाण ॥७६॥ भा० मुहमूलंमि य चारी सिरे य कउहे य पूयसकारो।खंधे पट्टीएँ भरो पोइंमि य धावओ वसहो ॥७७॥ उद्देसणुपुबीए वुच्चत्यं पेहमाणिणो दोसा। जे य गुणा पढमाए ते वाघायंमि सेसासु ॥प्र०५॥ पउरन्न पाण पढमा बीयाए भत्तपाण न लहति। तइआ उवगरणहरी नत्यि चउत्थीइ सज्झाओ॥६॥ पंचमिआए संखडि छट्ठीइ गणस्स भेयर्ण जाण । सत्तमिआ गेलन्नं मरणं पुण अट्ठमी चिंति ॥७॥ बुद्धीए पुत्रमुहं वसहमिओ गंतु उत्तरे पासे। एवं पुवुत्तरओ वसहिं गिव्हिज निहोसं ॥८॥ रुद्दए महर्षडिहं पेहिजा चोयगो भणइ एवं । ठायंतञ्चिय तुझ य अमंगलं कुबहा भंते! ॥९॥ आहायरिओ लोए नगरनिवेसंमि पढमवत्थुमि। सीयाणं पेहिजइ न य दि8 तं अमंगलयं॥१०॥ दिसा अवरदक्षिणा दक्खिणा य अवरा य दक्षिणापुछा । अवरुत्तरा य पुछा उत्तरपुत्रुत्तरा चेव ॥११॥ उहिट्ठकमेणासिं पढम पडिलेहिऊण वाघाए । बीयं पडिलोहिजा एवं उद्देस
ओऽहाणी ॥१२ प्र०॥ दशे तणडगलाई अच्छणभाणाइधोवणा खेत्ते। काले उच्चाराई भावेण गिलाणकूरुवमा ॥७८॥ भा०। जाव गुरूण य तुज्झ य केवइया ? तत्थ सागरेणुवमा। केवइकालेणेहिह ? सागार ठवंति अण्णेवि ॥४॥ पुत्रुदिढे इच्छइ अहव भणिजा हवंतु एवइया। तत्थ न कप्पइ वासो असई खेत्ताणऽणुन्नाओ ॥५॥ सकारो सम्माणो (३०६) १२२४ ओपनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर IA