________________ घारेमाणो विहीइ सुपरिसुदं। हबति गुणाणायतणं अविहि असुदे अणाययणं // 3 // सावजमणायतणं असोहिठाणं कुसीलसंसरगी। एगट्ठा होति पदा एते विवरीय आययणा // 4 // बजेनु अणायतणं आयतणगवेसणं सया कुजा। तं तु पुण अणाययणं नायत्रं दधभावेण // 5 // दवे रुहाइघरा अणायतणं भावओ दुविहमेव / लोइय लोगुत्तरियं नहियं पुण लोइयं इणमो॥६॥खरिया तिरिक्खजोणी तालायर समण माण सुसाणे। बग्गुरिय वाह गुम्मिय हरिएस पुलिंद मच्छंधा // 7 // खणमवि न खमं गंतुं अणायतणसेवणा सुविहियाणं। जंगधं होइ वणं तंगधं (घो) मारुओ याइ // 8 // जे अन्ने एवमादी लोगंमि दुर्गुछिया गरहिया य। समणाण व समणीण व न कप्पई तारिसे वासो // 9 // अह लोउनरियं पुणऽणायतणं भावतो धमुणेयई। जे संजमजोगाणं करेंति हाणि समस्थावि // 770 // अंबस्स य निबस्स य तुण्डंपि समागयाई मूलाई। संसम्मीएं चिट्ठी अंबो निबत्तणं पत्तो // 1 // सुचिरपि अच्छमाणो नलथयो उमछुवाङमज्झमि। कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते? // 2 // सुचिरपि अच्छमाणो वेरुलिओ कायमणीय ओमीसे। न उवेइ कायभावं पाहन्नगुणेण नियएण // 3 // भावुगअभावुगाणि य लोए दुविहाई हुंति दवाई। वेरुलिओनस्थ मणी अभावुगी अनदवेणं // 4 // ऊणगसयभागेर्ण बिंचाई परिणमंति सम्भायं। लवणागराइसु जहा बजेह 121 कसीलसंसगीं // 5 // जीवो अणाइनिहणो तम्मावणभाविओ य संसारे। खिप सो भाविजइमेलणदासाणुभावणं // 6 // जह नाम महरसलिलं सागरसलिलंक प्रणियभावं मेलणदोसाणुभावेणं // 7 // एवं सु सीलमंतो असीलमंतेहिं मेलिओ संतो। पावइगुणपरिहाणी मेलणदोसाणुभावेणं ॥८॥णाणस्स दंसणस्स य चरणस्स य जत्थ होद उवघातो। वजेजऽवजभीरू अणाययणवजओ खिप्पं // 9 // जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। मूलगुणपडिसेवी, अणायनणं तं वियाणाहि // 780 // जत्थ साहम्मिया बहवे. भिनचित्ता अणारिया। उत्तरगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि // 1 // जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। लिंगवेसपडिच्छन्ना, अणायतणं तं बियाणाहि // 2 // आययणंपिय दुविहं दवे भावे य होइ नाया। दमि जिणधराई भावमि य होइ तिविहं तु // 3 // जत्थ साहम्मिया वहये, सीलमंता बहुस्सुया। चरित्तायारसंपन्ना, आययणं ने बियाणाहि // 4 // सुंदरजणसंसम्गी सीलदरिदपि कुणइ सीलड्ढे / जह मेरुगिरीजायंतणंपि कणगत्तणमुवेइ // 5 // एवं खलु आवयणं निसेवमाणस्स हुज साहुस्स। कंटगपहे व छलणा S रागहोसे समासज // 6 // पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / मूलगुणे छट्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई // 7 // हिंसाऽलिय चोरिके मेहुल परिग्गहे य निसिभने। इय छट्टाणा मूले उमामदोसा य इयरंमि॥८॥ पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणा य सलणा य। उवधाओ य असोही सवलीकरणं च एगट्ठा ॥९॥छट्ठाणा तिगठाणा एगतरे दोमु, वावि छलिएण। कायथा उ विसोही सुद्धा दुक्खक्खयट्ठाए // 79 // आलोयणा उ दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य। एकेका चउकना दुवग्ग सिद्धावसाणा य // 1 // आलोयणा वियडणा सोही सम्भावदायणा चेव। निंदण गरिह विउदृण सद्धरणंति एगट्ठा // 2 // एत्तो संलुद्धरण बुच्छामी धीरपुरिसपत्नं। जंनाऊण सुविहिया करति दुक्सक्खयं धीरा // 3 // वा दुबिहा य होइ सोही दवसाही य भावसोही य। दमि वत्थमाई भावे मूलत्तरगणेस // 4 // छत्तीसगणसमझागएण तेणवि अवस्स कायवा। परसक्खिया विसोटी सरतति लेणं // 5 // जह सुकुसलोऽवि विजो अन्नस्स कहेइ अप्पणी वाहिं। सोऊण तस्स विजस्स सोवि परिकम्ममारभइ // 6 // एवं जाणतेणवि पायच्छित्तविहिमप्पणो सम्म। तहविय पागडलरयं आलोएतवयं होई // 7 // गंतूण गुरुसकास काऊण य अंजलिं विणयमूलं / सवेण अत्तसोही कायवा एस उवएसो ॥८॥नहु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं / उद्धरियसबसलो मुज्झइ जीवो धुयकिलेसो // 9 // सहसा अण्णाणेण व भीएण व पिल्लिएण व परेण। बसणेणायंकेण व मूढेण व रागदोसेहिं / / 800 // जंकिंचि कयमकजं न हुने दलब्भा पुणो समायरिउं। तस्स पडिकमियावं न हुतं हिपएण वोढवं // 1 // जह बालो जपतो कजमकर्ज व उजुयं भणइ / तं तह आलोएजा मायामयविप्पमुको उ॥२॥ तस्स य पायच्छित्तं जं मम्गविऊ गुरू उवइसंति। तं तह आयरियां अणवत्थपसंगमीएणं // 3 // नवि तं सत्यं च विसं व दुप्पउत्तो व कुणड वेयालो। जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमाइणो कुदो // 4 // जं कुणइ भावसाई अणुड़ियं उत्तमट्ठकालंमि। दुलभबोहीयत्तं अणतसंसारियत्तं च // 6 // तो उद्धरंति गारवरहिता मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छादसणसङ मायासलं नियाणं च॥६॥ उदरियसबसलो आलोइयनिंदिओ गुरुसगासे। होइ अतिरेगलहुओ ओहरियभरोष भारवहो // 7 // उहरियसबसल्डो भत्तपरित्राएँ धणियमाउत्तो। मरणाराहणजुनो चंदग-7 वेज्ज्ञ समाणेइ ॥८॥आराहणाइ जुत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं। उक्कोसं तिनि भवे गंतूण लभेज निचाणं // 9 // एसा सामायारी कहिया मे धीरपुरिसपन्नत्ता। संजमतवड्ढगाणं निग्गंधाणं महरिसीण // 810 // एवं सामायारि जूंजता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमणतं // 1 // एसा अणुग्नहत्था फुडवियडविसुद्धवंजणाइन्ना। इकारसहिं सएहिं एगणवन्नेहिंसंमत्ता॥८१२॥ भाष्यगाथाः३२२ प्रक्षिप्ता२७॥इति श्रीओघनियुक्तिः शिलोत्कीर्णजैनागमे आगममंदिरे उत्कारिता संवत 1999 मार्गशीर्पशुत्रयोदश्यां। मुनि दीपरत्नसागर 1242 ओघनियुक्तिः -