________________
kath
एग ॥७१०॥ आयाणे निक्खेवे ठाणनिसीयणतुयट्टसंकोए। पुर्व पमजणट्ठा लिंगट्ठा चेव स्यहरणं ॥१॥ चउरंगुलं विहत्थी एवं मुहर्णतगस्स उ पमाणं। वितियं मुहप्पमाणं गणणप. भाणेण एकेक ॥२॥ संपातिमरयरेणूपमजणट्ठा वयंति मुहपुत्ति। नासं मुहं च बंधइ तीए वसहि पमजंतो॥३॥ जो मागहओ पत्थो सविसेसतरं तु मत्तयपमाणं। दोसुवि दवग्गणं बासावासासु अहिगारो ॥४॥ सूचोदणस्स भरिओ दुगाउअहाणमागओ साहू। भुंजइ एगट्ठाणे एवं किर मत्तयपमाणं ॥ ५॥ संपाइमतसपाणा धूलिसरिक्खे य (सरक्खा) परिगलंतंमि। पुढविदगअगणिमास्यउद्धंसण लिसणा डहरे॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे । संसत्तभत्तपाणे मत्तगपरिभोगऽणुन्नाओ॥७॥ एकमि उपाउम्गं गुरुणो बितिओग्गहे य पडिकुटुं। गिण्हइ संघाडेगो धुवलंभे सेस उभयपि ॥८॥ असई लाभे पुण मत्तए य सधे गुरूण गेण्हंति। एसेव कमो नियमा गिलाणसेहाइएसुपि ॥९॥ दुलभदवं व सिया घयाइ नै मत्तएमु गेण्हंति। लदेवि उपजत्ते असंघरे सेसगट्ठाए॥७२०॥ संसत्तभत्तपाणेसुवावि दो(द)सेसुमत्तए गहणं । पुर्व तु भत्तपाणं सोहेउ छुर्हति इयरेसु॥१॥ दुगुणो चउम्गुणो वा हत्थो चउरंस चोलपट्टो उ। थेरजुवाणाणट्ठा सण्हे थाईमि य विभासा ॥२॥ येउवि वाउडे वाविएऽहिए खदपजणणे चेय। तेसिं अणुग्गहत्था लिंगृदयट्ठा य पट्टो उ ॥३॥ संथारुत्तरपट्टो अड्ढाइजा य आयया हत्था। दोण्हं पिय वित्थारो हत्यो चउरंगुलं चेव ॥४॥ पाणादिरेणुसारक्खणट्ठया होति पट्टगा चउरो। छप्पइयरक्खणट्ठा तत्थुवार खोमियं कुजा ॥५॥ स्यहरणपहमेत्ता अदसागा किंचि वा समतिरेगा। एकगुणा उ निसेजा हत्थपमाणा सपच्छागा ॥ ६॥ वासोवग्गहिओ पुण दुगुणो उवही उ वासकप्पाई। आयासंजमहेउं एक्कगुणो ससओ होइ॥७॥जं पुण संपमाणाओ इसि हीणाहियं व लंभेजा। उभयपि अहाकल्यं न संघणा तस्स छेदो वा ॥८॥ दंडएलट्ठिया चेव, चम्मए चम्मकोसए। चम्मच्छेदण पट्टेवि, चिलिमिली धारए गुरू ॥९॥ जं चण्ण एवमादी तवसंजमसाहगं जइजणस्स। ओहाइरेगगहियं ओवग्गहियं वियाणाहि ॥७३०॥ लट्ठी आयपमाणा चिलट्टि चाउरंगुलेण परिहीणा। दंडो बाहुपमाणो विदंडओ कक्खमेत्तो उ॥१॥ एकपर्व पसंसंति, दुपवा कलहकारिया। तिपटा लाभसंपन्ना, चउपचा मारणंतिया ॥२॥ पंचपनाउ जा लट्ठी, पंथे कलहनिवारणी। छनपवा य आयंको, सत्तपत्रा अरोगिया ॥३॥ चउरंगुलपइट्ठाणा, अटुंगुलसमूसिया। सत्तपत्रा उजा लट्ठी, मत्ता(ता)गयनिवारिणी ॥४॥ अट्ठपया असंपत्ती, नवपचा जसकारिया। बसपा उ जा लट्ठी, तहियं सव्वसंपया ॥५॥ वंका कीटक्सइया चित्तलया पोडाय दड्ढा या लट्ठीय उम्मसुक्का बजेयता पयत्तेणं ॥ ६॥ विसमेसु य पञ्चे, अनिष्फनेसु अच्छिम् । फुडिया फरुसवना य, निस्सारा चेव निंदिया॥७॥ तणूई पत्रमजोसु, धूला पोरेसुगंठिला। अथिरा असारजरढा, साणपाया य निदिया॥ ८॥ घणवद्धमाणपत्रा निदा वनेण एगवन्ना य। घणमसिणवट्टपोरा लट्ठि पसत्था जइजणस्स ॥९॥ दुपसुसाणसावयचिक्खलविसमेसु उदगमझेसु । लट्ठी सरीररक्खातवसंजमसाहिया भणिया ॥७४० ॥ मोक्खट्ठा नाणाई तणू तयट्ठा तयट्ठिया लट्ठी। विठो जहोवयारो कारणतकारणेसुतहा ॥१॥ जं जुबइ उवकारे उवगरणं तं सि होइ उषगरणं । अतिरेग अहिगरणं अजतो अजयं परिहरंतो ॥२॥ उग्गमउप्पायणासुद्ध, एसणादोसवजियं। उबहिं धारए भिक्खू, पगासपडिलेहणं ॥३॥ उम्गमउपायणासुद्धं, एसणादोसवज्जियं। उवहिं धारए भिक्खू. जोगाणं साहणट्ठया ॥४॥ उम्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसवजिय। उवहिं धारए भिक्खू, अप्पदुट्ठो अमुच्छिओ ॥५॥ अज्झत्थविसोहीए उवगरणं बाहिर परिहरंतो। अपरिग्गहीति भणिओ जिणेहिं ताकदं. सीहिं॥६॥ उम्गमउप्पायणासुदं, एसणादोसबज्जियं। उवहिं धारए भिक्खू, सदा अज्झत्थसोहिए ॥७॥ अज्झप्पविसोहीए जीवनिकाएहिं संथडे लोए। देसियमहिंसगतं जिणेहि लोकदसीहिं ॥८॥ उचालियंमि पाए इरियासमियस्स संकमट्ठाए। वावज्जेज कुलिंगी मरिज तं जोगमासज ॥९॥न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमोवि देसिओ समए। अणवज्जो उपओगेण सत्रभावेण सो जम्हा ।।७५०॥ नाणी कम्मस्स खयट्ठमुडिओऽणुट्ठितो य हिंसाए। जयइ असद अहिंसस्थमुडिओ अवहओ सो उ॥१॥ तस्स असंचेअयओ संचेययतो य जाई सत्ताई। जोगं पप्प विणस्संति नस्थि हिंसाफलं तस्स ॥२॥ जो य पमत्तो पुरिसो तस्स य जोगं पहुच जे सत्ता। वावजंते नियमा तेर्सि सो हिंसओ होइ ॥३॥ जेवि न वावजंती नियमा तेसिपि हिंसओ सो उ। सावजो उ पओगेण सवभावेण सो जम्हा ॥४॥ आया चेव अहिंसा आया हिंसत्ति निच्छओ एसो। जो होइ अप्पमत्तो अहिंसओ हिंसओ इयरो॥५॥ जो य पओगं जुंज हिंसत्थं जो य अन्नभावेणं । अमणो उ जो पउंजइ इत्थ विसेसो महं बुत्तो ॥६॥ हिंसस्थं जुजंतो सुमहंदोसो अणंतर इयरो । अमणो य अप्पदोसो जोगनिमित्त च विन्नेओ॥७॥ रत्तो वा दुट्टो वा मूढो वा जं पउंजइ पओगं । हिंसावि तत्थ जायइ तम्हा सो हिंसओ होइ ॥८॥ न य हिंसामित्तेणं सावजेणावि हिंसओ होइ । सुदस्स उ संपत्ती अफला भणिया जिणवरेहिं ॥९॥ जा जयमाणस्स भये विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स। सा होइ निजरफला अज्झस्थविसोहिजुत्तस्स ॥७६०॥ परमरहस्समिसीणं समत्तगणिपिडगझरितसाराणं । परिणामियं पमाणं निच्छयमवलंबमाणाणं ॥१॥ निच्छयमवलंवंता निच्छयओ निच्छयं अयाणता । नासंति चरणकरणं बाहिरकरणालसा केई ॥२॥ एवमिणं उवगरणं १२४१ ओपनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर
5