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________________ - वायमुत्तपुरीसाणं, पत्तवेगं न धारए ॥४॥राया विजमि मए विजसुयं भणइ किंच ते अहियं ? । अहियंति वायकम्मे विजे हसणा य परिकहणा ॥५॥ एसा परिवणविही कहिया | भे धीरपुरिसपत्ना। सामायारी एत्तो बुच्छ अप्पक्खरमहत्थं ॥६॥ सबातों आगतो चरमपोरिसिं जाणिऊण ओगाढं। पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ सज्झायं ॥७॥ पुवुद्दिट्टो य विही इहंपि पडिलेहणाइ सो चेव। जं एत्वं नाणत्तं तमहं बुच्छं समासेणं ॥८॥ पडिलेहगा उ दुविहा भत्तद्वियएयरा य नायबा। दोण्हर्विय आइपडिलेहणा उ मुहर्णतग सकायं ॥९॥ ततो गुरू परिमा गिलाणसेहाति जे अभत्तट्ठी। संदिसह पाय मत्तेय अप्पणी पट्टगं चरिमं॥६३०॥ पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइया अणुचवणा। तो सेस पायवत्थे पाउँठणगं च भत्तट्ठी ॥१॥ जस्स जहा पडिलेहा होइ कया सो तहा पढइ साहू। परिय इव पयओ करेइ वा अन्नवावा ॥२॥ चउभागवसेसाए चरिमाए पडिकमिनु कालस्स। उचारे पासवणे ठाणे चउचीसई पेहे ॥३॥'अहियासिया उ अंतो आसन्ने मज्झि तह य दूरे या तिन्नेव अणहियासी अंतो छच्छच बाहिरओ ॥४॥ एमेव य पासवणे वारस चउवीसइंतु पेहित्ता। कालस्सवि GIतिग्नि भवे अह सूरो अस्थमुवयाई ॥५॥ जइ पुण निवाघाओ आवासं तो करेंति सवेवि। सड्ढाइकहणवाघायताएँ पच्छा गुरु ठति ॥ ६॥ सेसा उ जहासत्ती आपुच्छित्ताण ठंति सट्टाणे। सुत्नत्थझरणहेउं आयरिएँ ठियंमि देवसियं ॥७॥ जो होज उ असमत्यो पालो बुड्ढो गिलाण परितंतो। सो आवस्सगजुत्तो अच्छेज्जा निजरापेही ॥८॥ आवासगंतु काउं जिणवरदिर्से गुरूवएसेणं । तिन्नि थुई पडिलेहा कालस्स विही इमो तत्थ ॥९॥ दुविहो य होइ कालो वाघातिम एयरो य नायत्रो। वाघाओ पंघसालाएं घट्टणं सड्ढकर्ण वा ॥६४०॥ बाघाते तइओ सिं दिजइ तस्सेव ते नियंति। नियाघाते दुन्नि उपुच्छंती काल घेच्छामो ॥१॥ आपुच्छण किइकम्मं आवस्सिय खलियपडियवाघाओ। इंदिय दिसा य तारा वासमसज्झाइयं व॥२॥ जइपुण वचंताणं छाय जाईचता नियत्ततिा निवापात दान्नि उअच्छति दिसा निरिक सियवासविजकगजिए वावि उवघातो ॥४॥ सज्झायमचिंता कणगं वळूण तो नियत्तंति। वेलाएँ दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा ॥५॥ आघोसिए बहुहिं सुर्यमि सेसेसु निवडइ दंडो। अह तं बहहिं न मुयं दंडिजाइ गंडओ ताहे ॥६॥ कालो सञ्झा य तहा दोवि समपति जह समं चेव। तह तं तुलंति कालं परिमदिसं वा असमझागं ॥ ७॥ पियधम्मो दढधम्मो संविम्यो वऽवजभीरू य। खेयन्नो य अभीरू कालं पडिलेहए साहू ॥८॥आउत्तपुवमणिए अणपुच्छा खलियपडियवाघाते। घोसंतमूढसंकियईदियविसएवि अमणुन्ने ॥९॥ निसीहिया नमोकारे काउस्सग्गे य पंचमंगलए। पुचाउत्ता सवे पट्ठवणचउकनाणत्तं ॥६५०॥ थोवावसेसियाए सम्झाए ठाइ उत्तराहुत्तो। चउवीसगदुमपुफियपुरग एकेकयदिसाए ॥१॥ भासंतमूढसंकियइंदियविसए य होइ अमणुने। चिंदू य छीयऽपरिणय संगणे वा संकियं तिण्हं ॥२॥ मूढो पदिसऽज्झयणे भासंतो पापि गिण्हइ न सुज्झे। अन्नं च दिसज्झयणं संकेतोऽणिविसयं वा ॥३०९॥ भाग जो वचंतमि विही आगच्छंतमि होइ सो चेव। जं एत्यं नाणत्तं तमहं बुच्छ समासेणं ॥३॥ निसीहिया नमुक्कारं आसजावडणपडणजोइक्खे। अपमजिय भीए वा डीए छिन्ने व कालवहो॥४॥ आगम इरियाचहिया मंगल आवेयणं तु मरणं मरुय)नार्य। सबेहिवि पट्ठविएहि पच्छा करणं अकरणं वा ॥५॥ सन्निहियाण वडारो पट्टविय पमाय नो दए काला बाहिठिए पडियरए पविसइ ताहे व दंडधरो॥६॥ पट्टविय बंदिए या ताहे पुच्छेइ किं सुर्य? मंते!। तेवि य कहति सर्व जेण सुयं व दिढे वा ॥आएकस्स व दोण्ह व संकियंमि कीरइन कीरए विहं । सगर्णमि संकिए परगणमि गंतुं न पुच्छति ॥८॥ कालचउक्के नाणत्तयं तु पादोसियंमि सब्वेवि। समयं पट्ठवयंती सेसेसु समं भवविसमं वा॥९॥ इंदियमाउत्ताणं हणंति कणगा उ सत्त उक्कोसं। वासामु य तिन्नि दिसा उउवढे तारगा तिन्नि ॥६६॥ कणगा हर्णति कालं ति पंच सत्तेव घि(गिम्हसिसिरवासे। उक्का उ सरेहागा रेहारहितो भवे कणतो ॥३१०॥ भा०। सबेवि पढमजामे दोनि उ वसभा उ आइमा जामा। तइओ होइ गुरूणं चउत्पओ होइ सवेसि ॥१॥ वासासु य तिण्णि दिसा हवंति पाभाइयम्मि कालंमि। सेसेसु तीसु चउरो उउंमि चउरो चउदिसिपि ॥३११॥ भाका तिसु तिण्णि तारगा उ उर्दुमि पाभाइए अदिद्वेऽवि। बासासु अतारागा चउरो छन्ने निविट्ठोवि ॥३१२॥ भागठाणासति बिंदूसु गेण्हइ विट्ठोवि पच्छिमं कालं। पडियरइ चाहिएको एको अंतडिओ गिण्हे ॥२॥ पाओसियअड्ढरते उत्तरदिसि पुत्र पेहए कालं। वेरत्तियंमि भयणा पुषदिसा पच्छिमे काले ॥३॥ सज्झार्य काऊणं पढमबितियासु दोसु जागरणं । अन्नं वावि गुणती सुणंति झायंति वाऽसुदे॥४॥ जो चेव अ सयणविही गाणं वशिओ वसहिदारे। सो चेव इहंपि भवे नाणत्तं नवरि सज्झाए ॥५॥ एसा सामायारी कहिया भे! धीरपुरिसपन्नत्ता। एत्तो उवहिपमाणं वुच्छ सुद्धस्स जह धरणा ॥६॥ उवही उवाहे संगहे य तह पग्गहुग्गहे चेव। भंडग उवगरणे या करणेऽपि य हुंति एगट्ठा ॥७॥ ओहे उचग्गहंमि य दुविहो उवही उ होइ नायवो। एकेकोऽविय दुविहो गणणाएँ पमाणतो चेव ॥८॥ पनं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया। पडलाई स्वत्ताणं च गुच्छओ पायनिजोगो ॥९॥ तिनेच य पच्छागा स्यहरणं चेव होइ मुहपत्ती। एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु 5 १२३९ओघनियुक्तिः - मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003942
Book TitleAagam Manjusha 41A Mulsuttam Mool 02 A OhNijjutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages25
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_oghniryukti
File Size18 MB
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