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बिलाइणो हजा। पडिसिअ संदिवो बाहर तो चउत्थाई ॥८॥ मोहचिगिच्छ विगिटुं गिलाण अत्तट्ठियं च मोतुणं । सेसे गंतुं भणई आयरिआ बाहरति तुमं ॥९॥ अपडिहणतो । आगंतुं बंदिउ भणइ सो उ आयरिए। संदिसह मुंज जं सरति तत्तिय सेस तस्सेव ॥५९०॥ अभणतस्स उ तस्सेव सेसओ होइ सो विवेगो उ। भणिओ तस्स उ गुरुणा एसुवएसो पवयणस्स ॥१॥ भुनंमि पढमकप्पं करेमि तस्सेव देति तं पायं। जावतिअंति अमणिए तस्सेव विगिंचणे सेसं ॥२॥ विहिगहिों विहिभुत्तं अइरेग भत्तपाण भोत्तमं । विहिगहिए विहिभुने एन्थ य चउरो भये भंगा ॥३॥ उम्गमदोसाइजद अह्वा बीयं जहिं जहापडिअं। इय एसो गहणविही असुद्धपच्छायणे अविही ॥२९५॥ भा०। कागसियालक्खइयं दविअरसं सवओ परामर्दु। एसो भये अविही जहगहिअंभोयणमि विही ॥४॥ उचिणइ व विट्ठाओ काओ अहवावि विक्खिरह सर्व । विप्पेक्खइ य दिसाओ सियालो अन्नोन्नहिं गिण्हे ॥६॥ भाग सुरही दोचंगट्ठा छोदण दवं तु पियइ दवियरसं। हेटोवरि आमहूँ इय एसो भुंजणे अविही ॥ ७॥ जह गहिअंतह नीयं गहणविही भोयणे विही इणमो। उकोसमणुक्कोसं सम
कयरस तु भुजेजा ॥८॥ताएवि अविहिगहिअं विहिभुतं तं गुरूहिणुन्नार्य। सेसा नाणुन्नाया गहणे दत्ते य निजुहणा ॥९॥ अहवावि अकरणाए उवठियं जाणिऊण काठाण। 17 घरेउं दिति गरू पसंगविणिवारणटूठाए॥३०० ॥ घासेसणा य एसा कहिया मे धीरपुरिसपन्नत्ता। संजमतवड्ढगाणं निग्गंधाणं महरिसीणं ॥१॥ एवं घासंसणांवाह जुजता चरण
करणमाउत्ता। साह खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमणतं ॥२॥ एनो परिठवणविहिं वोच्छामि धीरपुरिसपन्नत्तं। जं नाऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्खयं धीरा ॥३॥ भत्तट्टि उपरि अहव अभत्तट्ठियाण जं सेसं। संबंधणाणेण उ परिठावणिआ मुणेयवा ॥३०४॥ भा० सा पुण जायमजाया जाया मूलोत्तरेहि उ असुद्धा । लोभातिरेगगहिया अभिओगकया विसकया वा ॥५॥ मूलगुणेहिं असुदं जंगहि भत्तपाण साहूहिं । एसा उ होइ जाता वुच्छ सि विहीएं बोसिरणं ॥५॥भा०ा एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले गुरुवइटे। आलोएँ एगपुंज तिहाणं सावणं कुजा ॥ ६॥ लोभातिरेगगहिअं अहव असुदं तु उत्तरगुणेहिं। एसावि होति जाया बोच्छ सि विहीएं योसिरणं ॥६॥भाग एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले गुरुवइट्टे। आलोए दुनि पुंजा तिहाणं सावर्ण कुजा ॥ ७॥ दुविहो खलु अभिओगो दो भावे य होइनायत्रो । दमि होइ जोगो चिजा मंता य भावंमि ॥८॥ विनाएं होअगारी अचियत्ता
सा य पुच्छए चरिऑ। अभिमंतणोदणस्स उ अणुकंपणमुझणं च खरे ॥९॥ बारस्स पिट्टणंमि अ पुच्छण कहणं च होअगारीए। सिट्टे चरियावंडो एवं दोसा इहंपि सिया ॥६००॥ बाजोगंमि उ अविरइया अज्झुववना सरुवभिक्खूमि। कडजोगमणिच्छंतस्स दंइ भिक्खं असुभभावे ॥१॥ संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स
उ ममापि उज्झयणा ॥२॥ एमेच विसकयंमिवि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे। गंधाई विनाए उज्झगमविही सियालवहे ॥३॥ एवं विजाजोए विससंजुत्तस्स बावि गहियस्स। पाणचएवि नियमाणा उ वोच्छ परिवर्ण ॥४॥ एगतमणावाए अथिते थंडिले गुरुवइटे। छारेण अकमित्ता तिढाणं सावणं कुज्जा ॥५॥ दोसेण जेण दुटुंतु भोयणं तस्स सावर्ण कज्जा।। एवं विहिवोसटे वेराओ मुचई साह ॥६॥ जापाइयं उपउज्जइ तत्तिअमिते विगिचणा नस्थि। तम्हा पमाणमहणं अइरेग होज उ इमेहि ॥७॥ आयरिए य गिलाणे पाहणए दाउभे सहसदाणे। एवं होइ अजाया इमा उ गहणे विही होइ ॥ ८॥ जइ तरुणो निरुबहओ भुंजइ तो मंडलीइ आयरिओ। असहुस्स वीसुगहणं एमेव य होइ पाहुणए ॥९॥ सुत्तत्यधिरीकरणं विणओ गुरुपूय सेहबहुमाणो। दाणवतिसवुड्ढी बुद्धिबलवद्धणं चेव ॥६१०॥ एएहिं कारणेहि उ केइ सहुस्सवि वयंति अणुकंपा। गुरुअणुकंपाए पुण गच्छे तित्थे य अणुकंपा ॥१॥ सति लाभे पुण बधे खेत्ते काले य भावओ चेव । गहण तिसु उक्कोसं भावे जं जस्स अणुकूलं ॥२॥ कलमोतणो उपयसा उक्कोसो हाणि कोहकुम्भज्जी। तत्यवि मिउतुप्पतरयं जत्य वजं अचियं दोसु ॥३०७॥ भा०ा लाभे सनि संघाडो गेण्हइ एगो उइहरहा सके। तस्सऽप्पणो य पजत्त गेण्हणा होइ अतिरेगं ॥३॥ गेलन्ननियमगहणं नाणत्तोभासियंपि तत्थ भवे । ओभासियमुशरिज विगिंचए सेसगं भुंजे॥४॥ दुखभदई व सिआ घयाइ घेतूण सेस भुजंति। योवं देमि व गेण्हामि यत्ति सहसा भवे भरियं ॥५॥ एएहिं कारणेहिं गहियमजाया उ सा विचिंचणया। आलोगमि तिपुंजा अदाणे निम्गयातीर्ण ॥६॥ एको व दो व तिथि व पुंजा कीरति किं पुण निमित्तं ?। विहह्माइनिग्गयाणं सुदेयरजाणणहाए॥७॥ एवं विगिंचिउं निग्गयस्स सना हवेज तं तु कह। निसिरेजा? अहव धुर्व आहारा होइ नीहारो॥८॥ यंडिल्ल पुषभणियं पढमं निदोस दोसु जयणाए। नवरं पुण णाणत्तं भावासनाए वोसिरणं ॥९॥ अणावायमर्सलोर्य अणवायालोय ततिय विवरीय। आवातं संलोग पुबुत्ता पंडिला चउरी ॥३०८॥ भाग अणावायमसंलोग निहोसं बितियचरिम जयणाए। पउरदबकुरुकुयादी पत्तेयं
मत्तगो चेव ॥६२०॥ तइएविय जयणाए नाणतं नवरि सहकरणंमि। भावासनाए पुण नाणत्तभिर्ण सुणसु वोच्छं ॥१॥ जदि पढम न तरेजा तो वितियं तस्स असइए तइयं । तस्स वा असई चउत्ये गामे दारे यरत्याए॥२॥साही पुरोहडे वा उपस्सए मत्तगंमि वा णिसिरे। अञ्चकडंमि बेगे मंडलिपासंमि वोसिस ॥३॥ तिणि साता महाराय!. अस्सि देहे पहड़िया।* १२३८ ओधनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर
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SAKAL