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________________ एएसि जाणणट्ठा गुरु आलोए तओ उ भुंजेजा। नाणाइसंधणट्ठा न वन्नबलरूवविसयट्ठा ॥२८॥ भा० सो आलोइयभोई जो एए जुजइ पए सवे । गविसणगहणग्घासेसणाइ तिवि. हाइवि विमुदं ॥२॥ एवं एगस्स विही भोत्तचे वन्निओ समासेणं । एमेव अणेयाणवि जं नाणतं तयं वोच्छं ॥३॥ अतरतबालबुड्ढा सेहाएसा गुरू असहुवग्यो। साहारणोग्गहाइलद्विकारणा मंडली होइ ॥४॥ नाउ नियगुणकालं वसहीपालोय भायणुग्गाहे। परिसंठियइच्छदवगेष्हणट्ठया गच्छमासज ॥५॥ असई य नियत्तेसु एक चउरंगलूणभाणेसु । पक्खिविय पडिग्गहर्ग तत्थऽच्छदवं तु गालेना ॥६॥ आयरियअभावियपाणगट्ठया पायपोसधुवणट्ठा। होइ य सुहं विवेगो सुह आयमणं च सागरिए ॥७॥ एक व दो व तिन्नि व पाए गच्छप्पमाणमासज। अच्छदवस भरेजा कसहवीए विगिंचेजा ॥८॥ मूइंगाईमकोडएहि संसत्तगं च नाऊणं। गालेज छम्बएणं सउणीघरएण व दवं तु ॥९॥ इय आलोइयपट्ठविअगालिए मंडलीइ सहाणे। सज्झायमंगलं कुणइ जाव सो पडिनियत्ता ॥५६०॥ कालपुरिसे व आसज मत्तए पक्खिवितु तो पढमा। अहवावि पडिग्गहगं मुयंति गच्छं समासज ॥१॥ चित्त बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण आयरिश्र। जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडली थेरो॥२॥ जइ लुद्धो राइणिओ होइ अलुद्धोचि जोऽवि गीयस्थो। ओमोवि हु गीयत्थो मंडलिराइणि सअलुद्धो उ॥३॥ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरू। सो चेव य आलोगो नाणतं तद्दिसाठाणे ॥४॥ निक्खमपवेस मोतं पढमसमहिस्सगाण ठ परिहाणी भावासन्नेवमाईया ॥२८१॥ भा०। पुत्रमहो राइणिो एको य गुरुस्स अभिमुहो ठाइ। गिण्हइ व पणामेइ व अभिमुहो इहरहाऽवन्ना ॥२॥भाका जो पुण हवेज खमओ अतिउचाओ व सो बहिं ठाइ। पढमसमुदिट्टो वा सागारियरक्खणवाए ॥५॥ एकेकस्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले। कट्ठऽट्ठिए व छुब्भद मा लेयकडा भवे वसही ॥६॥ मंड. लिभायणभोयण महर्ण सोही य कारणुवरिते। भोयणविही उ एसो भणिओ तेजुकदंसीहिं ॥७॥ मंडलि अहराइणिआ सामायारी य एस जा भणिआ। पुर्व तु अहाकडगा मुचंति तओ कमेणियरे ॥२८३॥ भा०ा निदमहुराणि पुर्ण पित्ताइपसमणट्ठया भुंजे। बुद्धिबलवड्ढणट्ठा दुक्खं खुविकिंचिउं निद्धं ॥४॥ अह होज निद्धमहुरणि अप्पपरिकम्मसपरिकम्मेहि। भोलूण निदमहुरे फुसिअ करे मुंचऽहागडए ॥३॥ कुकुडिअंडगमित्तं अहवा खुड्डागलंबणासिस्स। लंबणताले गिण्हइ अविगियवयणो य राइणिओ॥६॥ गहणे पक्खेवंमि असामा. यारी पुणो भवे दुविहा । गहणे पायंमि भवे वयणे पचखेवणा होइ ॥७॥ कडपयरच्छेएणं भोत्तवं अहव सीहखइएणं । एगेहि अणेगेहिविवजेत्ता घूमइंगालं ॥८॥ असुरसुरं अचवचवं अदुयमविलंमिअं अपरिसाटिं। मणवयणकायगुत्तो भुंजइ अह पक्खिवणसोहिं ॥२८९॥ भा० उग्गमउप्पायणासुद्ध, एसणादोसजि। साहारणं अयाणतो, साहु हबइ असारओ ॥८॥ उम्गम उपायणासुद, एसणादोसपजिअं। साहारणं वियाणतो, साहू हवइ ससारओ॥९॥ उम्गमउप्पायणासुद्ध, एसणादोसवजि। साहारणं अयाणतो, साह कुणद तेणिों ॥५७०॥ उमामउपायणासुद्ध, एसणादोसवजिअं। साहारण बियाणतो, साहू पावइ निन्जरं ॥१॥ अंतंतं भोक्खामित्ति बेसए मुंजए य तह चेव। एस ससारनिविट्ठो ससारओ उदिओ साहू ॥२॥ एमेव य भंगतिअंजोएयचं तु सार नाणाई। तेण सहिओ ससारो समुदवणिएण दिद्रुतो ॥३॥ जत्थ पुण पडिग्गहगो होज कडो तत्थ भए अन्नं । मत्तगगहिउनरिअं पडिम्महे जं असंसद् ॥ ४॥ पुण गुरुस्स सेसं तं छुम्भइ मंडलीपडिग्गहके। बालादीण व दिजइ न छुम्भई सेसगाणऽहिजे ॥५॥ सुकोलपडिग्गहगे विआणिआ पक्खिये दवं सुके। अभतद्विआण अट्ठा बहुलंभेजं असंसट्ठ ॥ ६॥ सोही चउक भावे विगइंगालं च विगयधूमं च। रागेण सयंगालं दोसेण सधूमगं होई ॥७॥ जत्तासाहणहेउं आहारैति जवणट्ठया जइणो। छायालीसं दोसेहिं सुपरिसुदं विगयरागा ॥८॥ हियाहारा मियाहारा, अणाहारा य जे नरा। न ते विजा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥९॥ कण्हमनयरे ठाणे कारणमि उ आगए। आहारेज(उ) मेहावी संजए सुसमाहिए ॥५८०॥ वेयण वेयावचे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए ॥१॥ नस्थि छुहाएं सरिसया वेयण मुंजेज तप्पसमणडा। छाओ वेयावचं न तरइ काउं अओ भुंजे॥२९०॥भा०ाइरियं नवि सोहेइ पेहाईयं च संजमं काउं। थामो वा परिहायइ गुणऽणुप्पेहास्य असत्तो॥१॥ भा०।अहवा न कुज आहार, कहिं ठाणेहिं संजए। पच्छा पच्छिमकालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं ॥२॥ आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीए।पाणदया तबहेउं सरीखोच्छेयणट्ठाए॥२९२॥ भा०ा आयंको जरमाई राया सनायगा व उवसम्मा। बंभवयपालणट्ठा पाणदया वासमहियाई ॥३॥ तवहेउ चउत्थाई जाब उ छम्मासिओ तयो होइ । छई सरीखोच्छेयणट्ठया होयऽ. णाहारो॥२९४॥ भा०ा एएहिं छहि ठाणेहि, अणाहारो य जो भवे। धम्म नाइकमे भिक्खू , झाणजोगरओ भवे ॥३॥ मुंजतो आहारं गुणोक्यारं सरीरसाहारं। विहिणा जहोवइ8 संजमजोगाण पहणट्ठा ॥४॥ भुडियावसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो । अपहुप्पन्ते अनंपि छोई ता लंबणे ठवए॥५॥ संदिवा संलिहिउँ पढम कार्य करेड कलसेणं । तं पार्ड मुहमासे वितियच्छदवस्स गिण्हति ॥ ६॥ दाऊण वितियकर्ष पहिया मज्झटिआउ दवहारी। तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोव्हंतु आयमणं ॥ ७॥ होज सिधा उदरियं तत्थ य आर्य१२३७ ओघनियुक्तिः - मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003942
Book TitleAagam Manjusha 41A Mulsuttam Mool 02 A OhNijjutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages25
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_oghniryukti
File Size18 MB
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