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बीएण विणा सस्सं इच्छ सो वासमम्भरण विणा आराहणमिच्छंतो आराह्यभत्तिमकरंतो ॥ ४ ॥ उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिप्फसिं च कुणइ जिणमती मणियारसिट्टिजीवस्स ददु रस्सेव रायगिहे ||५|| आराहणापुरस्सरमणमहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुंची नमुकारं ॥ ६॥ अरिहंतनमुकारो इकोऽवि हविज जो मरणकाले। सो जिणवरेहिं दिट्टो संसारुच्छेअणसमत्थो ॥ ७ ॥ मिठो किलिकम्मो नमो जिणाणंतिसुकयपणिहाणो। कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरुति सूलिहओ ॥ ८ ॥ भावनमुकारविवजिआई जीवेण अकयकरणाई गहियाणि अ मुकाणि अ अनंतसो दद्दलिंगाई ॥ ९ ॥ आराहणापडागागहणे हत्यो भवे नमोकारो तह सुगइमम्गगमणे रहुड जीवस्स अप्पडिहो ॥ ८० ॥ अन्नाणीऽवि अ गोवो आराहित्ता मओ नमुकारं चंपाए सिडिओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ ॥ १ ॥ विजा जहा पिसायं सुदुउवत्ता करेइ पुरिसवसं नाणं हिअयपिसायं सुदवडतं तह करेइ ॥ २ ॥ उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पडत्तेणं । तह हिययकिण्हसप्पो मुट्ठवउत्तेण नाणेणं ॥ ३ ॥ जह मफडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउं न सफेद तह खणमचि मज्झत्यो विसएहिं विणा न होइ मणो ॥ ४ ॥ तम्हा स उडिउमणो मणमकडओ जिणोवएसेणं। काउं सुत्तनिवदो रामेजयो सुहज्झाणे ॥ ५ ॥ सूई जहा ससुता न नस्सई कयवरंमि पडिआदि । जीवोऽवि तह ससुतो न नस्सह गओषि संसारे ॥ ६ ॥ खंडसिलोगेहि जवो जइ ता मरणाउ रक्खिओ राया। पत्तो अ सुसामन्नं किं पुण जिणउत्तमुत्तेनं १ ॥ ७ ॥ अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरतं च। उवसमविवेगसंवरपयसुमरणमित्तसुअनाणो ॥ ८ ॥ परिहर छज्जीववहं सम्मं मणवयणकायजोगेहिं जीवविसेसं नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ॥ ९ ॥ जह ते न पिअं दुक्खं जाणिज एमेव सजीवाणं सङ्घायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ॥ ९० ॥ तुंगं न मंदराओ आगासाओ विसालयं नत्थि जह तह जयंमि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्यि ॥ १ ॥ सज्ञेविय संबंधा पत्ता जीवेण सङ्घजीवेहिं तो मारंतो जीवे मारइ संबंधिणो सङ्के ॥ २ ॥ जीववहो अप्पवहो जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सङ्घजीवहिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं ॥ ३ ॥ जावइआई दुक्खाई हुंति चउग्गहगयस्स जीयस्स सबाई ताई हिंसाफलाई निउणं विआणाहि ॥ ४ ॥ जंकिंचि सुहमुआरं पहुत्तणं पयइसुंदरं जं च आरुगं सोहम्मां तं तमहिंसाफलं सव्वं ॥ ५ ॥ पाणोऽवि पाडिहेरं पत्तो छूढोऽवि सुंसुमारदहे। एगेणवि एगदिणऽजिएणऽहिंसावयगुणेणं ॥ ६ ॥ परिहर असमवयणं सर्वपि चउविहं पयत्तेणं संजमवंतावि जज भासादोसेण लिप्यंति ॥ ७॥ हासेण व लोहेण व कोहेण भएण वावि तमसचं मा भणसु २ सचं जीवहि अत्यं पसत्यमिणं ॥ ८ ॥ विस्ससणिजो माया व होइ पुज्जो गुरुब्व लोअस्स । सयणुब्ब सबवाई पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ ॥ ९ ॥ होउ व जडी सिहंडी मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा लोए असच्चवाई भन्नइ पाखंडचंडालो ॥ १०० ॥ अलिअं सईपि भणिअं विहणइ बहुआई सच्चवयणाई पडिओ नरयंमि वसू इक्केण असच्चवयणेणं ॥ १ ॥ मा कुणसु धीरः बुद्धि अप्पं व बहुं व परघणं चित्तुं । दंतंतरसोहणयं किलिंषमित्तंपि अविदिनं ॥ २ ॥ जो पुण अर्थ अवहर तस्स सो जीविअंपि अवहइ जं सो अत्थकएणं उज्झइ जीअं न उण अत्यं ॥ ३ ॥ तो जीवदयापरमं धम्मं गहिऊण गिव्ह माऽदिनं जिणगणहरपडिसिद्धं लोगविरुद्धं अहम्मं च ॥ ४ ॥ चोरो परलो मिऽवि नारयतिरिए लहइ दुक्खाई। मणुअत्तणेवि दीणो दारिद्दोबदुओ होइ ॥ ५ ॥ चोरिक्कनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई। किढि मोरपिच्छचित्तिअगुट्टी चोराण चलणेसु ॥ ६ ॥ रक्खाहि वंभचेरं वंभगुत्तीहिं नवहिं परिमुद्धं निचं जिणाहि कामं दोसपकामं वियाणित्ता ॥ ७॥ जावइया किर दोसा इहपरलोए दुहावहा हुति आवहई ते सच्चे मेहुणसन्ना मणूसस्स ॥ ८ ॥ रइअरइतरलजीहाजुएण संकप्पउम्भडपणेणं विसयबिलवासिणा भ (म ) यमेहुणबिम्बो अरोसेणं ॥ ९ ॥ कामभुअंगेण दट्ठा लज्जानिमोयदप्पदादेणं नासंति नरा अवसा दुस्सहदुक्खावविसेणं ॥ ११०॥ लडकनिरयवियणाओ घोरसंसारसायरुव्वहणं। संगच्छइ न य पिच्छइ तुच्छत्तं कामियसुहस्स ॥ १॥ वम्महसरसयत्रिदो गिदो वणिउब्व रायपत्तीए पाउखालयगेहे दुग्गंधेऽणेगसो वसिओ ॥ २ ॥ कामासत्तो न मुणइ गम्मागम्मंपि वेसियाणुव्व सिद्धी कुवेरदत्तो निअयमुआसुरयरइरत्तो ॥ ३ ॥ पडिपिडिय कामकलिं कामग्धत्थासु मुयसु अणुबंधं महिलासु दोसविसवारीसु पयहं नियच्छंती ॥ ४ ॥ महिला कुलं सुवंसं पियं सुयं मायरं च पियरं च विसयंधा अगणंती दुक्खसमुदम्मि पाडेइ ॥ ५ ॥ नी अंगमाहिं सुपओहराहि उप्पिच्छमंथरगईहिं महिलाहिं निनयाहि व गिरिवरगुरुआवि भिजंति ॥ ६ ॥ सुषि जियासु सुदवि पियासु सुठुवि परूढपेमासु । महिला भुजंगी व पीसंभं नाम को कुणइ ? ॥ ७ ॥ वीसंभनिन्भरंपिडु उक्यारपरं परूद्धपणयपि कयचिप्पियं पियं झत्ति निंति निणं यासाओ ॥ ८ ॥ रमणीयदंसणाओ सोमालंगीड गुणनिबद्धाओ। नवमालमालाउन हरंति हिययं महिलियाओ ॥९॥ किं तु महिलाण तासिं दंसणसुंदरजणियमोहाणं। आलिंगणमइरा देह वज्झमालाणव विणासं ॥ १२० ॥ रमणीण दंसणं चैव सुंदर होउ संगमसुहेणं। गंधुच्चिय सुरहो मालईइ मलणं पुण विणासो ॥ १ ॥ साकेअपुराहिवई देवरई रज्जसुक्लप भट्ठो पंगुलहेतुं छूढो बूढी अ नईइ देवीए ॥ २ ॥ सोअसरी दुरिअ दरी कवडकुड़ी महिलिआ किलेसगरी वइरविरोअणअरणी दुक्खखणी सुक्लपडिवक्ला ॥ ३ ॥ अमुणिअमणपरि ( प्र० घर ) कम्मो सम्म को नाम नासिउं तरह। वम्महसरपसरोहे दिट्ठि९१५ मतपरिज्ञा, आहा- १४- १२४
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मुनि दीपरत्नसागर