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ठविए पायच्छित्ते गणिणा गणिसंपयासमोणं । सम्ममणुमनिय तयं अपावभावो पुणो भणइ ॥३॥ दारुणदुहजलयरनियरभीमभवजलहितारणसमत्ये। निप्पचवायपोएमहत्यए अम्ह उरिखवसु ॥४॥ जइऽवि स खंडियचंडो अक्खंडमहबओ जई जइवि। पव्वजवउट्ठावणमुट्ठावणमरिहह तहावि ॥५॥ पहुणो सुकयाणत्तिं भिच्चा पञ्चप्पिणंति जह विहिणा। जावजी. वपहण्णाणत्ति गुरुणो तहा सोऽवि ॥ ६॥ जो साइआरचरणी आउहियदंडसंडियवओ वा। वह तस्सवि सम्ममुवडियस्स उट्ठावणा भणिया ॥७॥ तत्तो तस्स महब्बयपब्वयभारोनमं. तसीसस्स। सीसस्स समारोवइ सुगुरूवि महब्बए विहिणा ॥८॥ अह हुज देसविरओ सम्मत्तरओ रओ अ जिणधम्मे (प्र० वयणे)। तस्सवि अणुव्ययाई आरोविजंति सुद्धाई ॥९॥ अनियाणोदारमणो हरिसवसविसट्टकंचु(पट)यकरालो। पूएइ गुरुं संघ साहम्मियमाइ भत्तीए ॥३०॥ नियदवमपुवजिणिंदभवणजिणविवरपइट्ठासु। विअरइ पसत्यपुत्थयसुतित्थ. तित्थयरपूयासु ॥१॥ जइ सोऽवि सव्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइकाओ। छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो अ॥२॥ संथारयपव्वज पव्यजइ सोऽपि निअम निवज । सव्वविरइप्पहाणं सामाइअचरित्तमारहइ ॥३॥ अह सो सामाइअधरो पडिवन्नमहव्वओ अजो साहू। देसविरओ अ चरिमे पञ्चक्खामित्ति निच्छाओ॥४॥ गुरुगुणगुरुणो गुरुणो पयर्प. कय नमिअमत्यओ भणइ। भयवं ! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुमयं पवजामि ॥५॥ आराहणाइ खेमं तस्सेव य अप्पणो अ गणिवसहो। दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा ॥६॥ तत्तो भवचरिमे सो पञ्चकखाइत्ति तिविहमाहारं। उकोसिआणि दव्याणि तस्स सव्वाणि दंसिज्जा ॥७॥ पासित्तु ताई कोई तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्म ?। देसं च कोइ भुचा संवेगगओ विचिंतेह ॥८॥-किं चत्तं(चेत्य) नोवभुत्तं मे, परिणामासुई सुई। दिवसारो सुहं साइ, चोअणेसाऽवसीअओ॥९॥ उअरमलसोहणट्ठा समाहिपाणं मणुन्नमेसोऽवि। महुरं पजेअब्बो मंद च विरेयणं खमओ ॥४०॥ एलतयनागकेसरतमालपत्तं ससकर दुखें। पाऊण कढिअसीअलसमाहिपाणं तओ पच्छा ॥१॥ महुरविरेअणमेसो कायव्यो फोफलाइदव्वेहिं । निव्वाविओ अ अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ ॥२॥ जावजीवं तिविहं आहारं वोसिरह इह खवगो। निजवगो आयरिओ संघस्स निवेअणं कुणइ ॥३॥ आराहणपचाइ खमगस्स य निरुवसग्गपचइज। तो उस्सम्गो संघेण होइ सवेण कायद्यो॥४॥ पचक्खाविति तओ तं ते खमयं चउबिहाहारं । संघसमुदायमझे चिइवंदणपुवयं विहिणा ॥५॥ अहवा समाहिहेउं सागारं चयह तिविमाहारं। तो पाणयंपि पच्छा वोसिरिअवं जहाकालं ॥६॥ तो सोनमंतसिरसंघडतकरकमलसेहरो विहिणा । खामेइ सवसंघ संवेगं संजणेमाणो ॥७॥ आयरिस उबझाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे केइ कसाया सवे तिविहेण खामेमि ॥८॥ सधे अवराहपए खामेमि अहं खमेउ मे भयर्व! । अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंपायस्स संघस्स ॥९॥ इज बंदणखमणगरिहणाहिं भवसयसमजिअं कम्मं । उवणे खणेण खयं मिआवई रायपत्तिय ॥५०॥ अह तस्स महायसुद्विअस्स जिणवयणभाविजमइस्स। पञ्चकूखायाहारस्स तिवसंवेगसुहयस्स ॥१॥ आराहणलाभाओ कयत्वमप्पाणयं मुणंतस्स । कलुसंकलतरणलढि अणुसद्धिं देइ गणिवसहो ॥२॥ कुमाहपरूढमूलं मूला उच्छिद पच्छ ! मिच्छत्तं । भावेसु परमतत्तं सम्मत्तं सुत्तनीईए ॥३॥ भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराएण वीयरायाणं । तह पंचनमुकारे पक्ष्यणसारे रई कुणसु ॥४॥ सुविहियहियनिझाए सज्झाए उजुओ सया होसु। निचं पंचमहब्बयरक्सं कुण आयपथक्वं ॥५॥ उज्झसु नियाणसाई मोहमहडं सुकम्मनिस्सल । दमसु य मुर्णिदसंदोहनिदिए इंदियमयंदे ॥६॥ निव्याणसुहावाए विइन्ननिरयाइदारुणावाए। हणमु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए ॥७॥ काले अपहप्पते सामने साक्सेसिए इण्हि। मोहमहारिउदारणअसिलहिँ सुणसु अणुसहि ॥८॥ संसारमूलषीयं मिच्छर्त सम्बहा विवजेहि। सम्मत्तं ददचित्तो होसु नमुकारकुसलो य ॥९॥ मगतिण्यिाहिं तोयं मन्नति नरा जहा सतण्हाए। सुक्खाई कुहम्माओ तहेव मिच्छत्तमूढमणो ॥६०॥ नवितं करेइ अम्गी नेव विस नेव किण्हसप्पो य। जं कुणइ महादोसं तिव्यं जीवस्स मिच्छत्तं ॥१॥ पावह इहेव वसणं तुरमणिदत्तुब दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहिअमणो साहुपओसाउ पावाओ॥२॥
पमाय सम्मने सव्यदुक्खनासणए। ज सम्मनपइट्ठाई नाणतवचिरिअचरणाई॥३॥ भावाणुरायपेमाणुरायसुगणाणरायरत्तो अ। धम्माणरायरत्तो अहोस जिणसासणे 14 निचं ॥४॥दसणभट्ठी भट्ठो नहु भट्ठो होइ चरणपन्भट्ठो। दसणमणुपत्तस्स हु परिअडणं नस्थि संसारे ॥५॥ दंसणभट्ठो भट्ठो दसणभट्ठस्स नस्थि निव्वाणं। सिझति चरणरहिआ दसणरहिआ न सिझति ॥६॥ मुद्दे सम्मत्ते अविरओऽवि अज्जेइ तित्थयरनाम। जह आगमेसिभदा हरिकुलपहुसेणिआईया ॥७॥ कहाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता। सम्महंसणरयणं नऽग्घई ससुरासुरे लोए॥८॥ तेलुकस्स पहुनं लगुणवि परिखडंति कालेणी सम्मत्तं पुण लढं अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं ॥९॥ अरिहंतसिदचेयपवयणआयरिअसम्बसाहूमुं। तिव्यं करेसु भत्ति तिगरणसुद्धेण भावेणं ॥ ७० ॥ एगाविसा समत्था जिणभत्ती दुग्गई निवारेउ। दुलहाई लहावेउं आसिद्धिं परंपरसुहाई ॥१॥ विजाचि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य। किं पुण निबुइविजा सिज्झिहिद अमत्तिमंतस्स? ॥२॥ तेसिं आराहणनायगाण न करिज जो नरो भत्ति। धणिअंपि उजमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ ॥३॥ ९१४ भक्तपरिज्ञा -२५-५
मुनि दीपरत्नसागर