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________________ अणुपुत्रेण विमोहाई, जाई धीरा समासज्ज । वसुमन्तो मइमन्तो, सर्च नच्चा अणेलिसं ॥ १७॥ दुविहंपि विइत्ताणं, बुद्धा धम्मस्स पारगा । अणुपुत्रीइ सक्काए, आरम्भाओ(य)तिउट्टई (कम्मुणा उ तिउट्टइ पा०)॥१८॥ कसाए पयणू किच्चा, अप्पाहारे तितिक्खए। अह भिक्खू गिलाइजा, आहारस्सेव अन्तियं ॥१९॥ जीवियं नाभिकविजा, मरणं नोवि पत्थए। दुहओऽविन सजिजा, जीविए मरणे तहा ॥२०॥ मज्झत्यो निजरापेही, समाहिमणुपालए।अन्तो बहिं विउस्सिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥२१॥ जं किंचुवकर्म जाणे, आऊ खेमस्समप्पणो। तस्सेव अन्तरदाए, खिप्पं सिक्सिज पण्डिए ॥२२॥ गामे वा अदुवा रपणे, पंडिलं पडिलेहिया। अप्पपाणं तु विनाय, तणाई संथरे मुणी ॥२३॥ अणाहारो तुयहिजा, पुट्ठो तत्वऽहियासए। नाइवेलं उवचरे, माणुस्सेहिं विपुट्ठवं ॥२४॥ संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड़महाचरा। भुञ्जन्ति मंससोणियं, न छणेन पमजए॥२५॥ पाणा देहं विहिंसन्ति, ठाणाओ न विउन्भमे। आसवेहिं विवित्तेहिं, तिप्पमाणोऽहियासए ॥२६॥ गन्धेहिं विवित्तेहि, आउकालम्स पारए। पम्गहियतरगं चेयं, दवियस्स वियाणओ ॥२॥ अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए। आयवजं पडीयारं, विजहिजा तिहा तिहा॥२८॥ हरिएसुन निवजिज्जा, थण्डिलं पुणिया सए। विओसिज अणाहारो, पुट्टो तत्थऽहियासए॥२९॥ इन्दिएहि गिलायन्तो, समियं आहरे मुणी। तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए ॥३०॥ अभिक्कमे पडिक्कमे, सकुचए पसारए। कायसाहरणट्ठाइ, इत्थं बाचि अचेयणो॥३१॥ परिकमे परिकिलन्ते, अदुवा चिट्टे अहायए।ठाणेण परिकिलन्ते, निसीइजाय अंतसो॥३२॥ आसीणेऽणेलिसं मरणं, इन्दियाणि समीरए। कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए॥३३॥जओ वजं समुपज्जे, न तत्थ अवलम्बए । तउ उकसे अप्पाणं, फासे तत्थ(५० सो फासा)ऽहियासए ॥३४॥ अयं चाययतरे सिया, जो एक्मणुपालए। सबगायनिरोहेऽवि, ठाणाओ न विउम्भमे ॥३५॥ अयं से उत्तमे धम्मे, पुषट्ठाणस्स परगहे। अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥३६॥ अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । पोसिरे सब्यसो कार्य, न मे देहे परीसहा ॥३७॥ जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति सङ्गया। संखुडे देहभेयाए, इय पन्नेहियासए ॥३८॥ भेउरेसु न रजिज्जा, कामेसु बहुतरेसुवि (बहुलेसुचि पा०)। इच्छा लोभं न सेविजा, धुववन्नं | सपेहिया (वण्णे सुहुमेपा०) ॥३९॥ सासएहिं निमन्तिजा, दिव्वमायं न सहहे।तं पडिबुज्न माहणे, सव्वं नूमं विहूणिया ॥४०॥ सव्यडेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए। तितिक्वं परमं नचा, विमोहन्नयरं हियं ॥४१॥ तिमि ॥ उ०८ विमोक्षाध्ययनं ८॥ जहासुयं वइस्सामि, जहा से समणे भगवं उद्याए । संखाए तसि हेमंते, अहुणा पाइए रीइत्था ॥४२॥ णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते। से पाराए आवकहाइ, एवं खु अणुधम्मियं तस्स ॥४३॥ चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाणजाइया आगम्म । अभिरुज्झ कार्य विहरिंसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिसु॥४४॥ संवच्छर साहियं मासं, जंन रिकासि वत्यगं भगवं। अचेलए तो चाईत वोसिज वत्थमणगारे॥४५॥ अर्पोरिसिं तिरिय मिनि चक्खुमासज अन्तसो झायइ । अह चक्खुभीया संहिया ते हन्ता हत्ता पहले कंदिसु॥४६॥ सयणेहिं वितिमिस्सेहिं इथिओ तत्थ से परिमाय। सागारियं न सेवेह य, से सयं पवेसिया झाइ॥४॥ जे केइमे अगारत्था मीसीभावं पहाय से झाइ। पुट्ठोवि नाभिभासिंसु गच्छद नाइवत्तइ अंजू (पुट्ठो व सो अपुट्ठोव णो अणुचाइ पावगं भगवं पा०)॥४८॥णो सुकरमेयमेगेसिं नाभिभासे य अभिवायमाणे। हयपुरे तत्य दण्डेहिं लूसियपुधे अप्पपुण्णेहिं ॥४९॥ फरुसाइं दुत्तितिक्खाई अइअच मुणी परकममाणे । आघायनद्गीयाई दण्डजुदाई मुट्ठिजुदाई ॥५०॥ गदिए मिहुकहासु समयंमि नायसुए विसोगे अदक्खु । एयाई से उरालाई गच्छइ नायपुत्ते असरणयाए॥५१॥ अवि साहिए दुवे वासे सीओदं अभुचा निक्खन्ते। एगत्तगए पिहियच्चे से अहिन्नायदसणे सन्ते ॥५२॥ पुढर्षि चाउकार्य च तेउकार्यच वाउकार्य च। पणगाई बीयहरियाई तसकायं च सबसो नचा ॥५३॥ एयाई सन्ति पडिलेडे, चित्तमन्ताई से अभिनाय। परिवजिय विहरित्था, इय सहाय से महावीरे॥५४॥ अदु थावरा य तसत्ताए, तसा य थावरत्ताए। अदुवा सबजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला ॥५५॥ भगवं च एवमसि (म० से) सोवहिए हु लुप्पई पाले। कम्मच सरसो नचा तं पडियाइक्खे पावगं भगवं॥५६॥ दुविहं समिच मेहावी किरियमक्खायणलिसं नाणी। आयाणसोयमइवायसोयं जोगं च सनसो गच्चा ।।५आआपत्तिय प्रणाउहि सयमसिं अकरणयाए। जस्सित्यिो परिमाया सव्वकम्मावहाउ से अदक्सु॥५टाहाकई न से सेवे सचसो कम्म (प० कंगणा) अदक्खू। जं किंचि पावर्ग भगवं तं अकुर्व वियर्ड भुजित्या॥५९॥णो सेवइ य परवत्यं परपाएवी से न भुञ्जित्था। परिवजियाण ओमाणं गच्छा संखडिं असरणयाए ॥६०॥ मायपणे असणपाणस्स नाणुगिदे रसेसु अपडिले । अच्छिंपिनो पमजिजा नोविय कंड्यए मुणी गायं ॥६१॥ अप्पं तिरिय पेहाए अपि पिडओ पेहाए। अप्पं बहएऽपहिभाणी पंथपेहि चरे जयमाणे॥६२॥ सिसिरंसि अदपढिवणे ते बोसिज पत्थमणगारे।पसारितु बाहुं परकमे नो अवलम्बियाण कंधमि॥६३॥ एस विही अणुकन्तो माहणेण मईमया । बहुसो अपडिलेण मगवया एवं रियं ॥६४ा तिमि ॥४०९उ०१॥परियासणाई सिजाजओएमइयाजो जाओ चुइयाओ।आइक्ख ताई सयणासणाई जाई सेवित्था से महावीरे॥६५॥आवेसणसभापवासु ११ आचारांग-असण-5 मुनि दीपरनसागर
SR No.003901
Book TitleAagam Manjusha 01 Angsuttam Mool 01 Aayaro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size30 MB
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