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________________ पणियसालासु एगया वासो अदुवा पलियठाणेसु पलालपुत्रेसु एगया वासो ॥ ६६ ॥ आगन्तारे आरामागारे तह य नगरे व एगया वासो सुसाणे सुष्णगारे वा रुक्खमूले व एगया वासो ॥६७॥ एएहिं (प्र०सु) मुणी सयणेहिं (प्र० सुं) समणे आसि पतेरस वासे। राई दिवंपि जयमाणे अपमन्ते समाहिए झाइ ॥ ६८ ॥ णिपिनो पगामाए सेबइ भगवं उडाए । अग्गावइ य अप्पाणं इसि साई य (प्र० सहअसि) अपडिने ॥ ६९ ॥ संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उट्ठाए। निक्खम्म एगया राओ बहि चकमिया मुहुत्तागं ॥ ७० ॥ सयणेहिं तत्युवसम्गा नीमा जासी अणेगरूवा य संसप्पगा य जे पाणा अदुवा जे पक्खिणो उवचरन्ति ॥ ७१ ॥ अदु कुचरा उवचरन्ति गामरक्खा य सत्तिहत्था य। अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगइया पुरिसा य ॥ ७२ ॥ इहोइयाई परलोइयाई भीमाई अणेगरूवाई। अवि सुम्भिदुब्भिगन्धाई सदाई अणेगरूवाई ॥ ७३ ॥ अहियासए सया समिए फासाई विरूवरूवाई। अरई रई अभिभूय रीयह माहणे अबहुबाई ॥ ७४ ॥ स जणेहिं तत्थ पुच्छि एगचरावि एगया राओ। अशाहिए कसाइत्या पेहमाणे समाहिं अपडिले ॥ ७५ ॥ अयमंतरंसि को इत्थ? अहमंसित्ति भिक्खु आहछु । अयमुत्तमे से धम्मे तुमिणीए कसाइए झाइ ॥ ७६ ॥ जंसिऽप्पेगे पवेयन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते । तंसिऽप्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्ति ॥ ७७ ॥ संघाडीओ पवेसिस्सामो एहा य समादहमाणा । पिहिया व सक्खामो अइदुक्खे हिमगसंफासा ॥ ७८ ॥ तंसि भगवं अपडिले अहे विगडे अहियासए दविए निक्खम्म एगया राज ठाइए भगवं समियाए ॥ ७९ ॥ एस विही अणुक्कन्तो माहणेण ममया बहुसो अपडिण्णेण भगवया एवं रीयन्ति ॥ ८० ॥ त्तिबेमि ॥ अ० ९३०२ ॥ तणफासे सीयफासे य तेउफासे य दंसमसगे य अहियासए सया समिए फासाई विरूवरूवाई ॥ ८१ ॥ अह दुम्बरलाढमचारी वज्जभूमिं च सुम्भभूमिं च पंतं सिज्यं सेविंसु आसणगाणि चेव पंताणि ॥ ८२ ॥ लादेहिं तस्सुवसग्गा बहवे जाणवया लूसिं अह लहदेसिए भत्ते कुकुरा तत्थ हिंसिसु निवसु ॥ ८३॥ अप्पे जणे निवारेइ लूसणए सुणए दसमाणे। छुच्छुकारिति आहंसु समणे कुकुरा दसंतुत्ति ॥ ८४॥ एलिक्खए जणा (म० जणे) भुजो बहवे वज्जभूमि फरुसासी लहिं गहाय नालियं समणा तत्थ य विहरिं ॥ ८५ ॥ एवंपि तत्थ विहरन्ता पुट्टपुत्रा अहेसि सुणएहिं संलुशमाणा सुणएहिं दुच्चराणि तत्व लादेहिं ॥ ८६ ॥ निहाय दण्डं पाणेहिं तं कार्यं बोसज्जमणगारे अह गामकष्टए भगवन्ते अहिआसए अभिसमिया ॥ ८७ ॥ नागो संगामसीसे वा पारए तत्थ से महावीरे। एवंपि तत्थ (प्र० तया) लाहिं अलद्धपुत्रोषि एगया गामो ॥ ८८ ॥ उवसंकमन्तमपडिनं गामंतियम्मि (प्र० पि) अप्पत्तं पडिनिक्खमित्तु लूसिंस एयाओ परं पलेहिति ॥ ८९ ॥ हयपुवो तत्थ दण्डेण अदुवा मुट्ठिणा अद् कुन्तफलेण । अदु लेगुणा कवालेण हन्ता हन्ता बहवे कन्दिसु ॥९०॥ मंसाणि (प्र० मंसूणि) छिनपुवाणि उडंभिया एगया कार्य परीसहाई लुचिसु अदुवा पंसुणा उवकरिंसु ॥ ९१ ॥ उचालय निहणिस अदुवा आसणाउ खलइंसु बोसट्टकायपणयाऽऽसी दुक्खसहे भगवं अपडिषे ॥ ९२ ॥ सूरो सङ्गामसीसे वा संबुडे तत्थ से महावीरे। पडिसेवमाणे फरसाई अचले भगवं रयित्था ॥ ९३ ॥ एस विही अणुकन्तो० जाव रीयंति ॥ ९४ ॥ त्तिबेमि ॥ अ० ९०३ ॥ ओमोयरियं चाएइ अपुट्ठेऽवि भगवं रोगेहिं पुढे वा अपुढे वा नो से साइज्बई तेइच्छं ॥ ९५ ॥ संसोहणं च वमणं च गायभंगणं च सिणाणं च संवाहणं च न से कप्पे दन्तपक्खाणं च परिनाए (प्र० य) ॥ ९६ ॥ विरए गामधम्मेहिं रीयइ माहणे अबहुवाई सिसिरंमि एगया भगवं छायाए झाइ आसीय ॥ ९७ ॥ आयावद्द य गिम्हाणं अच्छइ उकुड़ए अभितावे। अदु जाव इत्थ गृहेणं ओयणमंथुकुम्मासेणं ॥ ९८ ॥ एयाणि तिनि पडिसेवे अट्ट मासे अ जावयं भगवं । अपिइन्थ एगया भगवं अद्धमा अदुवा मासंपि ॥ ९९ ॥ अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदुवा विहरित्था (प्र० अपिवित्ता)। गओवरायं अपडिले अन्नगिलायमेगया भुजे ॥ १०० ॥ छट्टेण एगया भुजे अदुवा अट्टमेण दसमेणं। दुवालसमेण एगया मुझे पेहमाणे समाहिं अपडिले ॥ १०१ ॥ णच्चा णं से महावीरे नोऽविय पावगं सयमकामी अहिं वाण कारित्था कीरतंपि नाणुजाणित्था ॥ १०२॥ गामं पविसे नगरं वा घासमेसे कडं परट्टाए। सुविसुद्धमेसिया भगवं आयतजोगयाए सेवित्था ॥ १०३॥ अदु वायसा दिगिंछत्ता जे अने रसेसिणो सत्ता । घासेसणाए चिट्ठन्ति सययं निवइए य पेहाए ॥ १०४॥ अदुवा माहणं च समणं वा गामपिण्डोलगं च अतिहिं वा। सोवागमूसियारिं वा कुकुरं वावि चिट्टियं पुरओ ॥ १०५॥ वित्तिच्छेयं वज्जन्तो तेसिमपत्तियं परिहरन्तो । मन्त्रं परकमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था ॥ १०६ ॥ अवि सूइयं वा सुकं वा सीयं पिंडं पुराणकृम्मासं । अद् बुकसं पुलागं वा ल पिंडे अद्धे दविए ॥ १०७ ॥ अपि झाइ से महावीरे आसणत्थे अकुकुए झाणं उर्दू अहे तिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिने ॥ १०८ ॥ अकसाई विगयगेही य सदरूवेस अमुच्छिए झाई। छउमत्थोऽवि (प्र० विवि) परकममाणो न पमायं सईपि कुवित्था ॥ १०९ ॥ सयमेव अभिसमागम्म आयतजोगमायसोहीए। अभिनिव्वुडे अमाइडे आवकटं भगवं समियासी ॥ ११०॥ एस विही अणु ० रीयइ ॥ १११ ॥ त्तिबेमि ॥ उ० ४ उपधानाध्ययनं ९ ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः ॥ [55] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्टे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पाणेहिं वा पणगेहिं वा बीएहिं वा हरिएहिं वा संसत्तं उम्मिस्सं (प्र० सीओदएण वा संसनं उम्मिस्सं ) सीओदएण वा ओसितं रचसा वा परिघासियं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परहत्यंसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जंति मनमाणे लाभेऽवि संते नो पडिग्गाहिज्जा से य (३) १२ आचारांग असणे- १ 1 मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003901
Book TitleAagam Manjusha 01 Angsuttam Mool 01 Aayaro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size30 MB
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