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विकास के जिन तत्त्वों का पारस्परिक समायोजन किया है, वह मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रतिष्ठित है । वे सफल जीवन के लिए 'सक्रिय बचपन' और माता-पिता एवं अभिभावकों की सामाजिक भूमिका पर विशेष ध्यान देते हुए सुसंस्कारों को ही व्यक्तित्व - विकास की नींव मानते हैं जिस पर चारित्रिक गुणों का भव्य भवन निर्मित किया जा सकता है। बच्चों को बेहतर भाषा सिखाने और जीवन में संयम बरतने के अनेक उदाहरण देकर उन्होंने बच्चों के सामाजिक, बौद्धिक और मानसिक विकास के जो 'मानदण्ड' निर्धारित किये हैं, वे 'मूल प्रवृत्तियों को दिशाएँ' दिखा सकते हैं। उन्होंने चिंतन-शक्ति के तार्किक विकास को भी व्यक्तित्व विकास की एक खास कड़ी माना है। बालकों के व्यक्तित्व को उन्नत और व्यापक बनाने के लिए उन्होंने प्रेम की पवित्र भावना को 'बेहतरीन प्रेरणा' मान कर यही सिद्ध करने की चेष्टा की है कि बालकों के चरित्र-निर्माण और व्यक्तित्वविकास की दिशा में उसका योगदान सर्वोपरि समझा जाना चाहिए। वे मानवीय धरातल पर धार्मिक मूल्यों का विश्लेषण करते हुए उन्हें व्यक्तित्व विकास का एक ऐसा सुसंस्कारित साधन स्वीकार करते हैं जिस पर जीवन का उदात्त स्वरूप प्रतिष्ठापित किया जा सकता है।
पुस्तक का प्रतिपाद्य बाल- शिक्षण और बाल विकास की मनोवैज्ञानिक विवेचना पर आधारित है जिसे प्राचीन चिंतकों की विचारधाराओं और आधुनिक मनोविश्लेषकों की प्रयोगशालाओं के परिणामों को एक साथ जोड़ कर प्रबुद्ध चिंतक ने जो निष्कर्ष निकाले हैं वे अत्यन्त विचारोत्तेजक एवं प्रासंगिक हैं। श्री चन्द्रप्रभ जी जैसे ध्यानयोगी आध्यात्मिक मनीषी बालविज्ञान और आधुनिक मनोविश्लेषण की नवीन उपलब्धियों
शिक्षा जगत् के साथ जोड़ने और उन्हें व्यक्तित्व - विकास की श्रृंखला में गूंथने के कार्य में कितने सिद्धहस्त हैं, इसकी गुणवत्ता तो पुस्तक के मनोयोगपूर्वक समग्र अध्ययन और अनुशीलनद्वारा ही प्रमाणित की जा सकती है।
निश्चय ही यह पुस्तक गागर में सागर भरने की लोकोक्ति का प्रत्यक्षीकरण है जिसमें व्यक्तित्व-विकास के सभी बिन्दु एक ही स्थान पर समायोजित किये गये हैं । विश्वास है यह पुस्तक हमें व्यक्तित्व विकास से सम्बन्धित एक ऐसा आत्मबोध प्रदान करेगा जिसके आलोक में हम बुनियादी सिद्धांतों के संबल जुटा कर अपने जीवन के श्रेष्ठ- सार्थक लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
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- डॉ. वेंकट शर्मा - प्रकाश दफ्तरी
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