________________
प्रकाशकीय
हमारे प्रकाशन-संस्थान के लिए यह गौरववर्धक है कि स्थितप्रज्ञसंत श्री चन्द्रप्रभ जी की बेहतरीन पुस्तक 'कैसे करें व्यक्तित्व-विकास' के पुनर्प्रकाशन कासुखद संयोग प्राप्त हुआ है। उनके प्रवचन और आलेखों में व्यावहारिक एवं मनोवैज्ञानिकजीवनदर्शन कावहअमृत घुलारहता है जिसका रसपान कर हम मानसिकशांति, व्यक्तित्व-विकास एवं आध्यात्मिक चेतना का सुकून प्राप्त करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ऐसे जिएँ, 'बेहतर जीवन केबेहतर समाधान', 'बातें : जीवन की, जीने की', 'लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थजगाएँ जैसी बेहद चर्चित पुस्तकों की कड़ी में ही एक और मील का पत्थर स्थापित कर रही है। लक्ष्य-निर्माण, सकारात्मक सोच और आत्मविश्वासजैसे उदात्त विषयों पर श्री चन्द्रप्रभजी का चिंतन आज नई पीढ़ी में नया उत्साह और ऊर्जा प्रदान कर रहा है। कैसे करें व्यक्तित्व-विकास' भले ही एक बाल मनोवैज्ञानिक पुस्तक हो, पर जीवन के बहुआयामी विकास में दीपशिखा का काम करेगी।
पुस्तक भिन्न-भिन्न शीर्षकों से कई अध्यायों में विभक्त है जिसकी विषय-सामग्री व्यक्तित्व-विकास के अंतर्वर्ती बिन्दुओंसेजुड़ी हुईहै।श्रीचन्द्रप्रभने सर्वप्रथम व्यवहार और स्वभाव को व्यक्तित्व-विकासका पहलाआधार मान कर बालक के जन्म और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org