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________________ के पास गए तो मुरझाया हुआ फूल भी खिल उठेगा। यही प्रयोग इंसान के साथ भी किया जा सकता है । अगर आप प्रेम की भावना को लेकर किसी के घर पहुँचे हैं, तो आपकी खातिरदारी का रूप ही कुछ और होगा। घर का वातावरण सोच पर प्रभावी सोच को हम कैसे बदलें, स्वस्थ सोच के स्वामी कैसे बनें? इस मुद्दे पर आने से पहले हम इस बात पर गौर करें कि आखिर वे कौनसे कारण होते हैं जिनके चलते हमारी सोच प्रभावित होती है? मेरे देखे हमारी सोच सर्वप्रथम हमारे घर के वातावरण से प्रभावित होती है । आदमी के घर का जैसा वातावरण होगा, वैसी ही आदमी की सोच और विचारधारा रूप-आकार ले लेती है । अगर घर का वातावरण प्रेमपूरित है तो आदमी के विचार भी वैसे ही प्रेममय होंगे और अगर घर का वातावरण कलहपूर्ण है तो व्यक्ति के सोच-विचार भी वैसे ही होंगे। अगर घर में मियां-बीवी झगड़ते हैं तो उसका असर बच्चों पर भी पड़ेगा, वे भी वैसा ही सीखेंगे। पति-पत्नी में प्रेम-अपनत्व है तो बच्चे भी प्रेम की भाषा सीखेंगे । व्यक्ति चाहता है कि बच्चे संस्कारित हों, आज्ञाकारी हों, विनम्र हों तो वह घर का वातावरण वैसा ही संस्कारवान बनाए। एक व्यक्ति को चोरी के अपराध में न्यायाधीश द्वारा सजा सुनाई जा रही थी। न्यायाधीश ने कहा—'तुम्हारी चोरी सिद्ध होती है और तुम्हें छह माह की सजा मुकर्रर की जाती है ।' उस व्यक्ति ने कहा—'ठहरो जज साहब, मुझे दंड देने से पहले मैं चाहता हूँ कि मेरी माँ को भी सजा मिले, मेरे पिता को भी सजा मिले।' जज ने पछा-'उन्हें किस अपराध में सजा दी जाए?' व्यक्ति ने कहा—'मझे जो सजा मिली है, उसके असली हकदार तो वे ही हैं। उन्हीं के कारण मुझमें अपराध की प्रवृत्ति पनपी । अगर वे पहले दौर में ही मेरी अपराधी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगा देते, तो यह नौबत ही नहीं आती।' । इसके विपरीत, एक बार एक बच्ची से उसके अध्यापक ने पूछा—'बिटिया, आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम सबके साथ इतनी शालीनता से, इतनी मधुरता से पेश आती हो? यह सीख तुमको किससे मिली?' बच्ची ने कहा—'सर, इसमें नई बात कौन-सी है ! मेरे घर में सारे ही लोग एक-दूसरे से इसी तरह पेश आते हैं।' अध्यापक कह उठा—'धन्य है तुम्हारे परिवारजनों को कि जहाँ घर का ७५ CATIONS लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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