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________________ अगले जन्म में वह भी बकरा बन सकता है, वह भी हलाल हो सकता है । आज तुम गर्व करते हो कि एक ही झटके में मैंने हलाल किया, वैसे ही तुम्हें काटते वक्त भी कोई ऐसा ही गर्व करेगा। जिस दिन जीवन का यह विज्ञान समझ में आ जाएगा कि यह जगत वही लौटाता है जो तुमने दिया है तो फिर तुम हर बुराई से बचने का प्रयत्न करोगे, तुम्हारा हर कृत्य सुकृत्य होगा, हर प्रयास सद्प्रयास होगा। लाइफ इज एन इको— जीवन और जगत मात्र एक-दूसरे की प्रतिध्वनि है, अनुगूंज है। यह जगत कैसे लौटाता है, इसे एक मनोवैज्ञानिक घटना से समझें । कहते हैं, एक बार माँ-बेटे के बीच झगड़ा हो गया। बेटा चारर-पाँच साल का था, गुस्से में आकर चला गया । वह पहुँचा बीच जंगल में और जोर-जोर से रोने लगा, चिल्लाने लगा—'आई हेट यू, मम्मी, आई हेट यू ।' जैसे ही बच्चे के मुँह से शब्द निकले, वह बच्चा चौंक पड़ा । जंगल उसकी ही आवाज़ को प्रतिध्वनित कर रहा था । बच्चा घबराया कि इस जंगल में कोई और भी बच्चा रहता है जो उससे नफरत करता है । बच्चे माँ से भले ही कितने ही रूठ जाएँ, लेकिन डर के क्षणों में वे उसी माँ से जा लिपटते हैं । वह बच्चा भी माँ की गोद में जा दुबका और उसने सारा वृत्तान्त कह सुनाया । माँ ने कहा- 'तुम एक काम करो, वापस जंगल में जाओ और वहाँ बड़े प्यार से, मुस्कान के साथ कहो, हाँ, हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ, आई लव यू ।' बच्चा फिर जंगल में गया । वह अभी भी घबरा रहा था, फिर भी उसने साहस बटोरकर कहा—‘हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, आई लव यू ।' जंगल उसी आवाज़ को लौटाने लगा- ' - 'हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, आई लव यू ।' जीवन का यह विज्ञान जीवन को एक अनुगूँज साबित करता है । जीवन में वही लौटकर आता है, जो तुमने किया है, कहा है । इसलिए अगर यह कहे कि 'आई हेट यू' तो सारा ब्रह्माण्ड तुम्हारे प्रति घृणा और क्रोध से भर जाएगा और अगर कहो - 'आई लव यू' तो सारा ब्रह्माण्ड तुम्हें प्रेम की सौगातों से भर देगा | अगर चाहते हो कि मुझे औरों से हमेशा प्रेम, शांति और सौम्यता मिले, तो अपनी ओर से भी ऐसा ही सोचो, ऐसे ही विचार रखो, ऐसी ही वाणी का प्रयोग करो, ऐसा ही चरित्र रखो । विज्ञान का यह प्रयोग करके देखें कि जब हम अपने चित्त में हिंसा का भाव लेकर किसी फूल के पास जाएँगे तो वह फूल भी कंपित होने लग जाएगा। फोटोग्राफी की ताज़ा खोजें यही कहती हैं कि अगर प्रसन्न भाव को लेकर आप फूल स्वस्थ सोच के स्वामी बनें Jain Education International For Personal & Private Use Only ७४ www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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