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वातावरण ही इतना शालीन है।'
आप यदि घर में 'तुम-तुम' कहोगे तो आपका बच्चा भी दूसरों को 'तुम' कहेगा। आजकल एक फैशन-सी चल पड़ी है कि पति हमेशा अपनी पत्नी को 'तुम' कहता है और पत्नियाँ भी कहाँ पीछे हैं, वे भी अपने पति को बेधड़क 'तुम' कहती हैं। अगर आप किसी को 'तुम' कहते हो तो 'तुम' कहना अपने आप में दूसरे को अपमानित करना हो गया। पति-पत्नी आपस में 'तुम' कहने की बात तो छोड़ें, अपने बच्चों को भी 'तुम' न कहें । अगर आप ऐसा करते हैं तो आपका बच्चा जिंदगी में किसी को 'तुम' नहीं कह पाएगा। आपके घर का वातावरण ही आपके बच्चे में वांछित संस्कारों का बीज-वपन कर सकता है। संगति का असर सोच पर
मनुष्य के मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला दूसरा तत्त्व है—संगति, सोहबत । इससे बहुत बड़ा फर्क पड़ता है कि व्यक्ति किन लोगों के साथ जीता है, उठता-बैठता है । कौन व्यक्ति कैसा है, अगर यह पहचानना हो तो उसके दोस्तों की जाँच-पड़ताल करो । जैसे दोस्त होंगे, वैसा ही व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता चला जाएगा। अच्छे लोगों के बीच अगर बरा आदमी भी बैठेगा तो वह भी जरूर अच्छा बन जायेगा और बुरे लोगों के बीच अगर अच्छा आदमी भी बैठ गया, तो उसे बुरा होने से कोई रोक नहीं सकता। काला और गोरा आदमी पास-पास बैठेंगे तो रंग भले ही न बदले, लेकिन एक-दूसरे के गुण-अवगुण जरूर प्रभावित होंगे।
अगर गंगा का पानी नाली में बहा दें तो गंगा का पानी भी गंदला हो जाता है और नाली का पानी ले जाकर गंगा में मिला दें तो नाली का पानी भी गंगोदक बन जाएगा। अगर शराब की दुकान पर खड़े होकर दूध भी पीओगे तो लोग आपको शराबी ही समझेंगे। जैसी संगति और सोहबत मिलती है, आदमी का जीवन वैसा ही बनता चला जाता है। अगर बादल से पानी की एक बूंद टपकती है तो जमीन पर गिरते ही वह मिट्टी में मिट जाती है, अपना अस्तित्व खो देती है। पानी की वही बूँद अगर केले के पेड़ के गर्भ में जाकर गिर जाए तो कपूर का रूप धारण कर लेती है । वही बूंद गरम तवे पर जा गिरे तो भस्म हो जाती है । वही बूंद अगर सर्प के मुँह में जा गिरे तो ज़हर बन जाती है । वही बूँद सीप में गिर जाए तो मोती बन जाती है । यही संगति का असर है, इसलिए जिंदगी में अकेले रहना कोई
स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
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