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________________ प्रवेश 'चलें, मन के पार' महामना महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभ सागर का वह सृजन है, जो उस यात्रा के लिए संकेत दे रहा है, जहाँ एक भव्यता हमारी प्रतीक्षा कर रही है। पुस्तक का प्रत्येक लेख, पृष्ठ, पंक्ति, शब्द ठेठ मन के सागर को गहराई से निहारकर लिखा गया है । इसका लेखन वृद्धत्व और सिद्धत्व की दिशा में एक मनीषी का स्वस्थ संकेत है | इसलिए इन वचन-वक्तव्यों को स्वर्ण-सूत्र कहने की बजाय हीरक-सूत्र कहना सच्चाई के ज्यादा करीब है। हीरक-सूत्र सुनने और पदने में भले ही कुछ लीक से हटकर लगें, पर ये बातें हीरों की हैं, हीरों के पारखियों के खातिर हैं। महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभ सागर वे चिन्तन-मनीषी हैं, जिन्होंने ध्यान और साधना के मार्ग में दक्षिण की सलिल-तलहटी से उत्तर के हिम-शिखर तक सफर किया है । उन्होंने चैतन्य के सभी शिखर-पुरुषों की ध्यान-विधियों का रसास्वादन किया है. योग से परिचित हुए हैं. और मन में, मन के पार पहुँचे हैं । सांप्रदायिक बनाम वैचारिक संकीर्णताओं और कुंठित सीमाओं से हटकर श्री चन्द्रप्रभ सागर ने पतंजली, महावीर, बुद्ध से लेकर अरविंद और ओशो तक के अन्तर-विचारों को आत्मसात् किया है । ध्यान की व्याख्या करना तो शायद बहुतों के लिए संभावित है, लेकिन श्री चन्द्रप्रभजी ने ध्यान के अनंत आयामों की न केवल परिचर्चा की है, अपितु निजी जीवन में पल्लवित एवं पोषित भी किया है। उनके पाँव शिखर की ओर हैं और सिर शिखर के करीब । यह कोरी कथनी नहीं है. आमने-सामने की अनुभूति है। निश्चित रूप से यह धरती का सौभाग्य है कि अस्तित्व के कुछ अनजाने इंतजामों के कारण भारत की मनीषा को और अधिक साफ-सुधरा करने के लिए एक मनीषी मिला है। इनका सामीप्य घुटन-भरी जिंदगी में शांति की तलाश है, वहीं इनके सानिध्य में ध्यान में डूबना, रमना, जीना मरुस्थल में मरूद्यान की संस्तुति एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003892
Book TitleChale Man ke Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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