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अनुभूति है । देश-विदेश से आकर लोग उनसे जुड़ रहे हैं । अपनी जिज्ञासाओं की आपूर्ति कर रहे हैं. अध्यात्म में नए सिरे से प्रवेश पा रहे हैं। सचमुच चन्द्रप्रभजी की हार्दिकता का संस्पर्श दूर तक असर करने लगा है।
'चलें, मन के पार पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभजी ने मन की पर्तदर-पर्त उघाड़ने की कोशिश की है। मन के विज्ञान से रू-ब-रू होने के लिए तीस निबंधों का यह अनमोल संग्रह सौ फीसदी उपयोगी है। मन की हर संभावना पर सर्वांगीण प्रकाश डालकर श्री चन्द्रप्रभजी ने मनुष्य के सम्पूर्ण मस्तिष्क का सर्वेक्षण करा दिया है। हमारी ऊर्जा, जो मन के माध्यम से सौ भागों में बंटी हुई है, ध्यान का सहारा लेकर उसका एकत्रीकरण मन-से-मुक्ति-की-यात्रा है।
श्री चन्द्रप्रभजी ध्यान में स्वयं रमते हैं, जीते हैं। वैसे तो इनके जीवन का प्रत्येक क्षण ध्यान में ही है। वे जो कुछ करते हैं, ध्यान में, ध्यान से करते हैं। लेकिन सुबह-साँझ जब वे 'ध्यानस्थ होते हैं, ऐसा लगता है, अस्तित्व की आभा इनकी आँखों में आविष्ट हुई है। इस समय कुछ क्षण पास बैठने पर ऐसा अहसास होता है मानो बोधि-विहार की आबोहवा का अनूठा तिलस्म आस-पास है। उनका जो कुछ है ध्यान और मन की एकाग्रता के नतीजे के रूप में है। ध्यान से संबंधित उनकी अनेकानेक पुस्तकें देशभर में, बुक स्टॉलों में उपलब्ध हैं, वहीं स्तरीय सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख घर-घर में ध्यान के प्रति मानसिकता बनाने में कारगर हुए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में हम वाकिफ होंगे अपने उस मन से. जो दिन-रात ऊबाऊ पर्यटन करता रहता है. उस चित्त से जिसकी वृत्तियों
और विकृतियों से हम परेशान हैं, अपनी उस आत्म-ऊर्जा से जो शिखर की बजाए तलहटी की ओर बह रही है। आखिर, हम क्या करें - प्रस्तुत पुस्तक में इसी का लेखा-जोखा है। कृपया पुस्तक को आप अपने ही विचार समझें; यह आपकी ही निधि है, और यों इसे सहज आत्मसात् हो लेने दें।
प्रकाश
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